उत्तराखंड राज्य में स्थित हरिद्वार शहर हिंदू धर्म के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। गंगा नदी के तट पर स्थित इस शहर का धार्मिक महत्व बहुत ही ज्यादा है। हरिद्वार में गंगा स्नान करने से जहां सभी पापों से मुक्ति मिलती है, वहीं दूसरी तरफ मृत्यु के पश्चात पितृपक्ष के दौरान हरिद्वार में किया गया श्राद्ध विशेष फल देता है। जैसा कि आप सभी जानते हैं बिहार राज्य में स्थित गया नगरी को मोक्ष की नगरी के रूप में जाना जाता है, और गया में किया गया तर्पण पितरों को मोक्ष दिलाता है, परंतु ऐसी धार्मिक मान्यता है कि हरिद्वार में हर की पौड़ी, सावंत घाट नारायणी शिला और कनखल में पिंडदान करने का महत्व और भी अधिक है।
हरिद्वार में पिंडदान का पौराणिक महत्व –
उत्तराखंड राज्य में स्थित हरिद्वार शहर के नारायणी शिला मंदिर में पितरों का श्राद्ध करने से उन्हें मोक्ष मिलने के साथ ही सुख संपत्ति की भी प्राप्ति होती है। एक पौराणिक कथा के माध्यम से यहां के धार्मिक महत्व को समझा जा सकता है। पौराणिक कथा के मुताबिक एक गयासुर नाम का राक्षस था। एक बार गयासुर देवलोक से भगवान विष्णु का श्री विग्रह लेकर भाग गया। जब वह भाग रहा था, तभी नारायण के विग्रह का धड़ उसके हाथ से छूटकर श्री बदरीनाथ धाम के ब्रह्म कपाली स्थान पर गिरा।
हृदय, कंठ से लेकर नाभि तक का भाग हरिद्वार के नारायणी मंदिर में गिरा और चरण गया में जाकर गिरा। वही नारायण के चरणों में गिरकर ही गयासुर की मौत हो गई। और उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। क्योंकि हरिद्वार में नारायण के हृदय का भाग आया, जिससे इस स्थान का धार्मिक महत्व बढ़ गया। धार्मिक मान्यता के अनुसार क्योंकि मां लक्ष्मी श्री नारायण के हृदय में निवास करती है, अतः हरिद्वार में श्राद्ध कर्म का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। यहां पर पितरों का पिंड दान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उन्हें जीवन मरण के बंधन से मुक्ति मिलती है।
कैसे करें हरिद्वार में पिंडदान –
हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि आत्मा अजर और अमर होती है। ऐसे में मृत्यु के बाद मनुष्य का शरीर तो नष्ट हो जाता है, जबकि आत्मा दर-बदर भटकती रहती है। भटकती हुई आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध एवं पिंडदान की क्रियाएं की जाती है। पितरों की तर्पण और पिंडदान करने का हरिद्वार में विशेष स्थान है। इसमें हरकी पौड़ी, कुशा घाट, कनखल और नारायणी शिला इन स्थानों पर पिंडदान करने से पितरों को मुक्ति मिलती है। हरिद्वार को हरि का द्वार माना जाता है। यहां पर विष्णु और महादेव दोनों निवास करते हैं।
इसलिए हरिद्वार में किया गया अपने पितरों के लिए कोई भी कार्य उन्हें मोक्ष दिलाता है, और पितृ जिस भी योनि में होते हैं, वहां तृप्त होते हैं। पितृ पक्ष के दौरान 15 दिनों तक पितृ धरती लोक में ही निवास करते हैं और अमावस्या के दिन वह पितृलोक में वापसी करते हैं। पितृपक्ष के दौरान यदि विधि विधान से पिंडदान की क्रिया की जाती है तो इससे पितृ तृप्त होकर अपने लोक में वापस जाते हैं और अपने पीछे परिवार की सुख और समृद्धि छोड़ जाते हैं।
पिंडदान की क्रिया कैसे की जाती है इससे पहले जानते हैं इसके लिए आवश्यक सामग्री के बारे में –
पिंडदान में उपयोग होने वाली आवश्यक सामग्री;-
पितृ पक्ष के दौरान गया में पिंडदान करने से पितर तृप्त होते हैं और इसी के साथ ही वो घर में अच्छी संतान के होने का आशीर्वाद भी प्रदान करते हैं। इसीलिए श्राद्ध करना बहुत ज्यादा जरूरी होता है। जो लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध और पिंडदान नहीं करते हैं उनकी पितरों की आत्मा कभी तृप्त नहीं होती है। उनकी आत्मा अतृप्त ही रहती है। श्राद्ध में तर्पण करने के लिए तिल, जल, चावल, कुशा, गंगाजल आदि का उपयोग अवश्य ही किया जाना चाहिए। उड़द, सफेद पुष्प, केले, गाय के दूध, घी, खीर, स्वांक के चावल, जौ, मूंग, गन्ने आदि का इस्तेमाल करते हैं श्राद्ध में तो पितर प्रसन्न होते हैं और घर में सुख शांति बनी रहती है।
पिंडदान करते समय रखें इन बातों का विशेष ध्यान-
◆ जब भी मृत व्यक्ति के घरवाले मृतक का पिंडदान करें तो सबसे पहले चावल या फिर जौ के आटे में दूध और तिल को मिलाकर उस आटे को गूथ लें। इसके बाद उसका गोला बना लें।
◆ जब भी आप तर्पण करने जाएं तो ध्यान रखें कि आप पीतल के बर्तन लें या फिर पीतल की थाली लें। उसमें एकदम स्वच्छ जल भरें। इसके बाद उसमें दूध व काला तिल डालकर अपने सामने रख लें। इसी के साथ अपने सामने आप एक और खाली बर्तन भी रखें।
◆ अब आप अपने दोनों हाथों को मिला लें। इसके बाद मृत व्यक्ति का नाम लेकर तृप्यन्ताम बोलते हुए अंजुली में भरे हुए जल को सामने रखे खाली बर्तन में डाल दें।
◆ जल से तर्पण करते समय आप उसमें जौ, कुशा, काला तिल और सफेद फूल अवश्य मिला लें। इससे मृत आत्मा को शांति मिलती है। ऐसा करने से पितर तृप्त हो जाते हैं। इसके बाद आप ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और उन्हें दान दक्षिणा दें।