इस धरती पर जन्म लेने वाला कोई भी जीव अजर-अमर नहीं है। ‘अमर’ शब्द, मात्र एक शब्द है। इसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है। धरती पर जन्म लेने वाले हर जीव को एक ना एक दिन यह संसार छोड़कर जाना ही होता है, और यही ब्रह्मांड की सच्चाई है। दुनिया में दो तरह के जीव होते हैं एक मनुष्य और एक जानवर। जानवरों को रीति रिवाज, समाज इत्यादि से कोई मतलब नहीं होता है। जबकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक सामाजिक रीति-रिवाजों के बंधन में बंधा हुआ होता है। एक बच्चे के जन्म के बाद से लेकर उसकी मृत्यु तक हर कदम पर रीति रिवाज का पालन करना होता है। इस संसार में कई धर्म है, और हर धर्म के अलग-अलग रीति रिवाज है। जिस प्राणी का जन्म जिस धर्म में होता है उसे उसी धर्म के रीति रिवाज का पालन जीवन पर्यंत करना होता है।
मनुष्य की मृत्यु के बाद भी अलग-अलग धर्मों में अलग-अलग रीत रिवाज का पालन करते हुए मनुष्य का अंतिम संस्कार किया जाता है। हिंदू, मुस्लिम, सिख अथवा ईसाई हर धर्म के अंतिम संस्कार की विधि अलग-अलग होती है। किसी धर्म में मृत शरीर को मुखाग्नि दी जाती है, तो किसी में दफनाया जाता है। धर्म के अनुसार अलग-अलग तरीके से अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी की जाती है। मृत शरीर की आत्मा की शांति के लिए उसके धर्म के अनुसार ही रीति-रिवाजों का पालन करते हुए उसका अंतिम संस्कार किया जाना अत्यंत आवश्यक होता है।
हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद के रीति रिवाज-
हिंदू धर्म में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर उसका अंतिम संस्कार के लिए जो रीति अपनाई जाती है वह कुछ इस प्रकार है। सर्वप्रथम इस बात का ध्यान रखना अनिवार्य है कि अंतिम संस्कार की विधि सदैव सूर्यास्त के पहले ही की जाती है। यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु सूर्यास्त के बाद होती है, तो उसके अंतिम संस्कार के प्रक्रिया करने के लिए अगले दिन सूर्योदय का इंतजार करना चाहिए। तब तक मृत शरीर का सिर उत्तर दिशा में व पैर दक्षिण दिशा में करके रखना चाहिए। मृत शरीर को अकेले नहीं छोड़ना चाहिए।
श्मशान घाट ले जाने से पहले की जाती है यह प्रक्रिया –
अंतिम संस्कार की प्रक्रिया शुरू करने के लिए सर्वप्रथम मृत शरीर को स्नान कराया जाता है। स्नान के बाद मृतक को सफेद कफन ओढ़ाया जाता है। कफन के ऊपर राम नाम की चादर डाली जाती है। इसके पश्चात फूलों से बनी माला पहनाकर मृत शरीर की विदाई की जाती है। यदि किसी सुहागिन महिला की मृत्यु होती है तो अंतिम विदाई से पहले उसका पूरा श्रृंगार किया जाता है। पूरा श्रृंगार करने के बाद महिला का पति आखिरी बार उसकी मांग में सिंदूर सजाता है। इस तरह पूरे श्रृंगार के साथ ही सुहागिन महिला को अंतिम यात्रा पर भेजा जाता है।
श्मशान घाट पहुंचने के बाद की प्रक्रिया –
श्मशान घाट पहुंचने से पहले कुटुंब के लोग पार्थिव शरीर की परिक्रमा करते हैं। इसके बाद मृतक को श्मशान घाट ले जाया जाता है। शरीर को शमशान घाट की तरफ ले जाते समय भी कुछ खास बातों का ध्यान रखा जाता है। जैसे शुरुआत में जब शरीर को शमशान की तरफ ले जाया जाता है तो सिर आगे की तरफ और पैर को पीछे की तरफ रखा जाता है। कुछ दूर ले जाने के बाद एक वेदी पर पार्थिव शरीर को रखने का प्रावधान है। इसके पीछे की मान्यता यह है कि ऐसा करने से मृत व्यक्ति आखिरी बार संसार का दर्शन कर सकें। इसके पश्चात जब शरीर को उठाया जाता है तब इसकी दिशा बदल दी जाती है। अब पैरों को आगे और सिर को पीछे कर दिया जाता है। इसके पीछे की मान्यता है कि अब मृत शरीर का संसार से बंधन टूट चुका है, और वह शमशान के रास्ते को देखते हुए आगे बढ़ रहा है।
श्मशान घाट पहुंचने के उपरांत मृत शरीर को जब चिता पर लिटाया जाता है, तो उसका सिर सदैव दक्षिण दिशा की ओर किया जाता है। श्मशान घाट पर मुखाग्नि देने से पहले जो व्यक्ति अंतिम संस्कार की प्रक्रिया कर रहा होता है, वह एक छेंद वाले घड़े में जल लेकर चिता की परिक्रमा करता है। परिक्रमा पूरी होने के बाद उस घड़े को फोड़ दिया जाता है, ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस प्रक्रिया के करने से मृतक शरीर से मोहभंग को दूर किया जा सके। इसके साथ ही यह भी मान्यता है कि इस क्रिया के करने से अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में जल, अग्नि, आकाश पृथ्वी सभी तत्व शामिल होते हैं। सभी नियमों का भली-भांति पालन करते हुए अंतिम में चिता को मुखाग्नि दी जाती है।
दाह संस्कार के बाद होता है पिंडदान –
मृतक के दाह संस्कार के बाद घर में 10 दिनों तक शूदक चलता है। जिसके दौरान खानपान के साथ कई अन्य नियमों का पालन करना होता है। दसवे दिन शांति कर्म के बाद मुंडन संस्कार की प्रक्रिया की जाती है। मृतक के सभी परिजनों का मुंडन संस्कार होना अनिवार्य है। 12वें दिन पिंडदान की प्रक्रिया की जाती है। इसके बाद 13वें दिन मृत्यु भोज का आयोजन किया जाता है। इस तरह से 13 दिनों की इस विधि विधान से हुई प्रक्रिया के बाद मृतक व्यक्ति की आत्मा दूसरे लोक के सफर पर निकल जाती है।