हिंदू धर्म में श्राद्ध एवं तर्पण का बहुत अधिक महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि अगर किसी मृत आत्मा का श्राद्ध नहीं किया जाता है तो वो आत्मा कभी भी मुक्त नहीं हो पाती है और अपने आस-पास रह रहे मनुष्यों को किसी न किसी रूप में परेशान करती रहती है। ऐसे में जब मृत आत्मा का श्राद्ध कर दिया जाता है तो आत्मा सारे बंधनों से मुक्त हो जाती है और यमलोक में प्रवेश कर जाती है।
गरुण पुराण में भी यह दर्शाया गया है कि श्राद्ध कर्म का बहुत अधिक महत्व है। गरुण पुराण के अनुसार मृत्यु हो जाने के बाद 13 दिनों तक मृत आत्मा धरती पर रहती है। 13 दिन पूरे होते ही आत्मा यमलोक की तरफ अपनी यात्रा की शुरुआत कर देती है। अगले ग्यारह महीने तक आत्मा की यात्रा चलती रहती है और आत्मा यमलोक तक पहुंचने में बारह महीने का समय लेती है।
इस ग्यारह महीने की यात्रा की अवधि में आत्मा को भोजन और जल नहीं प्राप्त हो पाता है। ऐसे में तर्पण और श्राद्ध किया जाता है ताकि मृत आत्मा की भूख और प्यास को संतुष्ट किया जा सके। जब तक आत्मा यमलोक नहीं पहुंच जाती है तब तक परिवार के सदस्यों के द्वारा पिंडदान या तर्पण किया जाना चाहिए। बस इसी वजह से पिंडदान और तर्पण को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
इसके साथ ही हिंदू धर्म में एक प्रकार का श्राद्ध और होता है जिसे त्रिपिंडी श्राद्ध के नाम से जाना जाता है। त्रिपिंडी श्राद्ध का भी बहुत अधिक महत्व है। आज इस लेख में हम ट्रिलियन श्राद्ध के बारे में ही आप सबको बताने जा रहे हैं। आइये जानते हैं त्रिपिंडी श्राद्ध क्या होता है एवं इसका क्या महत्व होता है।
● क्या है त्रिपिंडी श्राद्ध?
त्रिपिंडी श्राद्ध का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। त्रिपिंडी श्राद्ध का अर्थ होता है हमारे द्वारा पिछली तीन पीढ़ियों का पूर्वजों का पिंडदान करना। अगर परिवार में कोई छोटी उम्र में या बुढ़ापे में मृत्यु को प्राप्त होता है तो ऐसे में उनका पिंडदान करना बहुत आवश्यक होता है। ऐसे व्यक्तियों की आत्मा की शांति के लिए ही त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है, जिससे कि मृत व्यक्तियों की भटकती हुई आत्मा को मुक्ति मिल सके।
ऐसा माना जाता है कि त्रिपिंडी श्राद्ध प्रियजनों की याद में किया गया एक योगदान है। हिंदू धर्म में इस श्राद्ध की विशेष मान्यता इसलिए भी है क्योंकि ऐसा माना गया है कि अगर किसी का श्राद्ध तीन वर्षों तक नहीं किया गया तो वो आत्मा नाराज हो जाती है और लोगों को परेशान करती है। ऐसे में आत्मा की शांति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध के रूप में योगदान किया जाता है।
त्रिपिंडी श्राद्ध को ही काम्य श्राद्ध भी कहा जाता है। आमतौर पर ये श्राद्ध आत्माओं और पूर्वजों की स्मृति या याद में किया जाता है। मुख्य तौर पर ये विशेष पूजा आत्माओं की शांति के लिए की जाती है। यदि तीन पीढ़ियों में परिवार में कोई कच्ची उम्र में या वृद्धावस्था में मृत्यु को प्राप्त हो जाता है तो उनकी मुक्ति के लिए त्रयम्बकेश्वर मंदिर के पास कुशावर्त तीर्थ पर त्रिपिंडी अनुष्ठान को अवश्य किया जाना चाहिए।
यदि पिछले तीन वर्षों में इस अनुष्ठान को ठीक तरह से नहीं किया जाता है तो पूर्वज क्रोधित हो जाते हैं। कोई भी आत्मा अगर (जिसका निधन हुआ हो) अंतुष्ट है तो वो अपनी आने वाली पीढ़ियों को परेशान करती है और उन्हें सुख से नहीं रहने देती है। ऐसे में इन आत्माओं को त्रयम्बकेश्वर में त्रिपिंडी श्राद्ध करके परमधाम भेजा जाता है।
● त्रिपिंडी श्राद्ध से होने वाले लाभ:-
यह श्राद्ध तीन पीढ़ियों से पहले के जो पूर्वज होते हैं, उन्हें शांत कराने में सहायक होता है। ये बात सिर्फ तीन पीढ़ी पर तक ही सीमित है। यही कारण है कि इस अनुष्ठान को 12 सालों में कम से कम एक बार अवश्य किया जाना चाहिए। इसके अलावा अगर किसी मनुष्य की कुंडली में पितृ दोष अंकित है तो ऐसे में उनके लिए त्रिपिंडी श्राद्ध अवश्य किया जाना चाहिए।
क्योंकि इसी श्राद्ध से व्यक्ति पितृ दोष से मुक्त हो पाता है एवं ये श्राद्ध पितृ दोष के हानिकारक प्रभावों के लिए सबसे उत्तम माना गया है। हमारे जो पूर्वज होते हैं, वो ईश्वर के समान होते हैं। ऐसे में उनके द्वारा प्रदान किया गया आशीर्वाद बहुत फलदायक होता है। यदि पूर्वज अपनी पीढ़ी के द्वारा किए गए श्राद्ध कर्म से प्रशन्न होते हैं तो वो आशीर्वाद के रूप में सुख- समृद्धि, संतान आदि के रूप में आशीर्वाद प्रदान करते है। त्रयम्बकेश्वर बहुत ही पवित्र स्थान है। इस स्थान पर श्राद्ध कर्म करने से मृत आत्माओं को मोक्ष की प्राप्ति होती है एवं परिवार को पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
त्रयम्बकेश्वर नासिक में स्थित है। ये अनुष्ठान और श्राद्ध कर्म करने के लिए उत्तम एवं सर्वश्रेष्ठ स्थान माना गया है। त्रयम्बकेश्वर बहुत ही पवित्र स्थान है। त्रिपिंडी श्राद्ध कर्म को करते वक़्त किसी का नाम और पितरों के गोत्र का उच्चारण नहीं किया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को इस बात का बोध नहीं होता है कि वो किस पूर्वज के श्राप से पीड़ित है एवं उसे किस पूर्वज को मुक्त कराना है। शास्त्रों के अनुसार, जिस आत्मा का श्राद्ध त्रयम्बकेश्वर में किया जाता है, वो आत्मा संतुष्ट हो जाती है और प्रशन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करती है।
यदि कोई व्यक्ति त्रयम्बकेश्वर में त्रिपिंडी श्राद्ध या पिंडदान करवाना चाहता है, तो पिंडदान करवाने के लिए या इससे जुड़ी कोई भी जानकारी प्राप्त करने के लिए लोग हमसे (Last journey) संपर्क कर सकते हैं। हमारी टीम हर संभव सहायता के लिए आपके साथ है। हमसे संपर्क करने के बाद पूर्वजों के त्रिपिंडी श्राद्ध को करने के लिए हमारे पुरोहितों द्वारा आपको उत्तम जानकारी प्रदान की जाएगी। इसी के साथ ही हमारी टीम आपके पूर्वजों का त्रिपिंडी श्राद्ध कराने में आपकी मदद भी करेगी।