मोक्ष के बारे में तो हम सभी जानते हैं। इसका मतलब होता है दुनिया से मुक्त हो जाना। दुनिया से मुक्त होना भी आसान नहीं होता है। जिसने अपने जीवन में अच्छे कर्म किये होते हैं, उसे प्राण त्यागने में ज्यादा दिक्कत नहीं होती है और उसके प्राण आसानी से निकल जाते हैं। लेकिन जिस व्यक्ति ने ज़िंदा रहते अच्छे कर्म नहीं किये होते हैं, उसके प्राण आसानी से नहीं निकल पाते हैं और प्राण निकलते समय उसे बहुत दर्द को महसूस करना होता है।
इसके अलावा जब व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, उसके बाद उसे पूरे विधि विधान के साथ दुनिया से विदा किया जाता है। जिस तरह से जन्म होने पर बच्चे का स्वागत विधि विधान से किया और छठी वगेरह मनाई जाती है। वैसे ही मृत्यु होने पर तेरहवीं वगेरह मनाई जाती है। इसी के साथ हिंदू धर्म में अस्थियों को विसर्जन करने की भी मान्यता है। लेकिन इन अस्थियों का विसर्जन कब किया जाना चाहिए इसके बारे में काफी कम लोग जानते हैं। चलिए आज हम सबको इसकी बारे में बताते हैं कि अस्थियों का विसर्जन कब किया जाना चाहिए।
● गंगा जी में ही क्यों किया जाना चाहिए अस्थि विसर्जन?
माता गंगा को सनातन धर्म मे मोक्ष दायिनी के नाम से जाना जाता है। जो व्यक्ति गंगा में स्नान कर लेता है, उसको 10 पापों से मुक्ति मिल जाती है। ऐसा माना जाता है कि मां गंगा इस धरती पर तो बहती ही है, इसके साथ ही उनकी दो अन्य धारा भी है जो पाताल में और आकाशगंगा है। गंगा को हिंदू धर्म मे बहुत ज्यादा पवित्र माना जाता है। बच्चे के मुंडन से लेकर मृत्यु के बाद व्यक्ति की अस्थियों के विसर्जन तक, हर काम गंगा घाट पर ही संपन्न किया जाता है।
मां गंगा को सर्वोच्च स्थान इसीलिए दिया गया है क्योंकि माता गंगा श्रीहरि के चरणों से निकली थी। उन्होंने भगवान शिव की जटाओं में वास किया था और तब पृथ्वी पर नीचे आई थीं। यही कारण है कि गंगा को स्वर्ग की नदी कहा जाता है। गंगा नदी के किनारे जिस व्यक्ति का निधन होगा है, माना जाता है कि उसके सारे पाप धुल जाते हैं और उसे बैकुंठ की प्राप्ति होती है। इसीलिए अगर किसी की मृत्यु गंगा किनारे नहीं भी होती है तो भी उसकी अस्थियों को गंगा में ही प्रवाहित किया जाता है जिससे कि उसके पाप धुल जाएं और उसे मोक्ष की प्राप्ति हो सके। गंगा में अस्थियों को प्रवाहित करने से स्वर्ग का मार्ग खुल जाता है और व्यक्ति को यमदण्ड का सामना भी नहीं करना पड़ता है। गंगा में अस्थियां डालने से पाप तो नष्ट हो जाते हैं और आत्मा को नया मार्ग भी मिल जाता है। भारत में प्रयाग, हरिद्वार, काशी और नासिक कुछ प्रमुख जगह हैं जहां पर अस्थियों को पूरे विधि विधान से प्रवाहित किया जाना। इससे सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है। ऐसी मान्यता है कि व्यक्ति की अस्थियां काफी समय तक गंगा नदी में ही रहती हैं। धीरे धीरे मां गंगा उन अस्थियों के माध्यम से इंसान के पाप को नष्ट करती हैं। और फिर इंसान की आत्मा के लिए नया मार्ग खुल जाता है।
● अस्थि विसर्जन कब किया जाना चाहिए?
जब भी किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसके बाद उसका अंतिम संस्कार किया जाता है। इस अंतिम संस्कार में मृत शरीर को अग्नि दी जाती है। अंतिम संस्कार की इस प्रक्रिया में देह के जो अंग होते हैं, उसमें से मात्र हड्डियों के अवशेष ही बचते हैं। ये अवशेष भी काफी हद तक जल जाते हैं और इन्हीं को अस्थियों के रूप में रखा जाता है। जब व्यक्ति का शरीर पूरी तरह से जल जाता है उसके बाद ही अस्थियों को लिया जाता है। मृत शरीर में कई तरह के रोगाणु और जीवाणु पैदा हो जाते हैं और इनके फैलने का खतरा बना रहता है, जिससे बीमारियां हो सकती है। इसीलिए जब व्यक्ति को जला दिया जाता है तो ये सारे जीवाणु और रोगाणु मर जाते हैं और जो बची हुई हड्डियां होती है वो एकदम सुरक्षित और स्वच्छ होती हैं। फिर इन्हीं अस्थियों को घर पर लाया जाता है। इन्हें छूने पर किसी भी प्रकार का कोई डर नहीं होता है। फिर इन अस्थियों का भी श्राद्ध कर्म कर दिया जाता है और इन्हें फिर पवित्र नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। जो लोग गंगा किनारे बसे हुए रहते हैं, उन लोगों को उसी दिन अस्थियों का विसर्जन कर देना चाहिए। जो लोग नदी किनारे नहीं बसे हैं वो लोग उस अस्थि कलश को घर के बाहर किसी पेड़ पर लटका दें। लेकिन हां ये बात ध्यान रखें कि 10 दिनों के भीतर ही उन अस्थियों का विसर्जन कर देना चाहिए। जब 10 दिनों के भीतर ही अस्थियों का विसर्जन गंगा जी में कर दिया है जाता है तो ऐसा माना जाता है कि