मानव का जो जीवन है वो एक चक्र के समान है। ये जीवन चक्र हमेशा घूमता रहता है। जिस तरह से जन्म के बाद मृत्यु का होना तय होता है, ठीक वैसे ही मृत्यु के बाद व्यक्ति को नया जन्म भी मिलता है। जन्म के समय भी तरह तरह की परम्पराएं और रीति रिवाज से एक बच्चे का स्वागत किया जाता है। वहीं जब किसी की मृत्यु हो जाती है तब भी पूरे रीति रिवाज के साथ ही व्यक्ति को अंतिम विदाई दी जाती है। हर धर्म में अंतिम विदाई को लेकर अलग अलग मान्यता होती है।
हिंदू धर्म रीति रिवाज
अगर बात करें हिंदू धर्म की तो अगर हिंदू धर्म में किसी भी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसके शव को अग्नि दी जाती है और बाद में उसकी अस्थियों को गंगा जी में प्रवाहित कर दिया जाता है। वहीं अगर हिंदू धर्म में किसी बच्चे की मृत्यु होती है तो उसको जलाया नहीं जाता है। बल्कि उसको पूरे हिंदू रीति रिवाज के साथ मिट्टी में दफना दिया जाता है। इसी तरह से मुस्लिम धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसको जलाया नहीं जाता है बल्कि उसको भी दफनाया जाता है। ऐसे ही अलग अलग धर्म में अंतिम संस्कार को लेकर अलग अलग मान्यता है।
आज हम बात करेंगे हिंदू धर्म की। हिंदू धर्म में व्यक्ति का अंतिम संस्कार किया जाता है और मृत शरीर को मुखाग्नि प्रदान की जाती है। अग्नि देने को लेकर भी हिंदू धर्म में बहुत सारी मान्यताएं हैं। अंतिम संस्कार के साथ ही कपाल क्रिया भी की जाती है। कपाल क्रिया के बिना अंतिम संस्कार पूरा नहीं होता है। किसी भी व्यक्ति के सिर में ही उसके जीवन का सब कुछ समाया रहता है। ऐसे में सिर को नष्ट करना बहुत ज्यादा आवश्यक हो जाता है। जब व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसके जीवन की सारी कहानी उसकी आँखों के सामने चलने लगती है। उसके अच्छे बुरे सारे कर्म एक नज़र में उसकी आँखों के सामने आ जाते हैं। ये सब दिमाग में रहता है। इसीलिए दिमाग को खत्म करना बेहद ज़रूरी होता है अन्यथा अगले जन्म में भी व्यक्ति पुराने जीवन की बातें करता है और उसको पुराने जन्म की ही चीज़ें याद आती रहती हैं। कई बार कपाल क्रिया न किये जाने की वजह से इंसान का विवेक भी सही नहीं रहता है। इसीलिए अंतिम संस्कार हो जाने के बाद इस क्रिया को कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए।
कपाल क्रिया होती है और कैसे की जाती है?
हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार की विशेष मान्यता है। किसी का अगर अंतिम संस्कार सही ढंग से और पूरे विधि विधान से नहीं किया जाता है तो ऐसा माना जाता है कि उसे मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है। उसकी आत्मा भी भटकती रहती है और परिजनों को परेशान करती रहती है। इसीलिए अगर किसी भी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसका पूरे विधि विधान से अंतिम संस्कार किया जाता है।
अंतिम संस्कार में भी बहुत सारी रीतियां होती हैं जिन्हें अवश्य ही पूरा किया जाना चाहिए। इसी में एक होती है कपाल क्रिया। इसके बारे में ज्यादा किसी को जानकारी नहीं होती है लेकिन हिंदू धर्म में इसकी बहुत अधिक मान्यता है। किसी के भी अंतिम संस्कार के समय कपाल क्रिया का होना बहुत आवश्यक है वरना ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति को अगला जन्म मिलने पर भी पिछले जन्म की काफी बातें याद रह जाती हैं। जब शव को मुखाग्नि प्रदान कर दी जाती है, उसके करीब आधे घण्टे के बाद शव की जो चमड़ी और मांस होता है वो अधिकांशतः जल जाता है। उसी समय बांस में लोटा बांधा जाता है और बांस में बंधे हुए लोटे से शव के सिर वाले हिस्से में और अधिक घी डाला जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि सिर के हिस्से को जलाना बहुत ज़रूरी होता है।
कपाल क्रिया विधि
सिर में जो हड्डियां होती हैं वो शरीर की तुलना में काफी अधिक मजबूत होती हैं इसीलिए वो आसानी से नहीं जल पाती हैं। उन्हें जलाने के लिए ज्यादा घी की आवश्यकता होती है। इसीलिए उन्हें ज्यादा घी डालने की प्रक्रिया को ही कपाल क्रिया के नाम से जाना जाता है। अगर कभी ऐसा होता है कि सिर का कोई हिस्सा जलने से रह जाता है तो अगले जन्म में भी व्यक्ति को बीते जन्म की बातें याद रहती हैं। अंतिम संस्कार करने के बाद इस क्रिया को अनिवार्य रूप से किया जाता है। कपाल क्रिया जब तक नहीं होती है तब तक व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है। इसीलिए कपाल क्रिया का किया जाना बहुत ज़रूरी होता है और तभी व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वह संसार के सारे बंधनों से मुक्त हो जाता है। वहीं अगर खोपड़ी पूरी तरह से नहीं जलती है तो तांत्रिक उसे अपने साथ भी ले जाते हैं और तांत्रिक क्रियाओं में उसका इस्तेमाल भी करते हैं।