हर साल पितृपक्ष में पूर्वजों की मोक्ष प्राप्ति के लिए लोग पिंडदान करते हैं या उनका श्राद्ध करते हैं। हिंदू धर्म में श्राद्ध का बहुत अधिक महत्व है। ऐसा करने से लोगों के जो पूर्वज होते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और उनका आशीर्वाद घर- परिवार एवं वंशज पर बना रहता है। वहीं अगर पितर प्रशन्न न हों तो परिवार में कोई न कोई समस्या लगी ही रहती है और शांति का अभाव बना रहता है।
इसीलिए श्राद्ध को अत्यधिक महत्व प्रदान किया गया है। वैसे तो पिंडदान कई स्थानों पर किया जाता है मगर कुछ स्थानों का विशेष महत्व है। इसी के साथ ही अगर पूर्वजों का श्राद्ध ऐसी जगह पर किया जाए जिन्हें शास्त्रों में भी पवित्र माना गया है तो ऐसे में पितरों को सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है। भारतवर्ष में ऐसे कई प्रमुख स्थान हैं जहां पर अगर व्यक्ति अपने पूर्वजों का श्राद्ध करता है तो इससे पिंडदान करने का उसका फल चार गुना तक बढ़ जाता है। आइये इस लेख में आगे जानते हैं कि भारतवर्ष में पिंडदान या श्राद्ध के लिए पवित्र स्थान कौन से हैं।
● हरिद्वार- हरिद्वार के नाम से ही स्पष्ट होता है कि ये हरि के द्वार की तरफ ले जाती है। हिंदू धर्म के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है हरिद्वार। गंगा तट पर बसा हुआ शहर हरिद्वार खुद में ही खास है। यहां आने मात्र से लोगों के काफी पाप नष्ट हो जाते हैं। वहीं ऐसी मान्यता है कि जो मनुष्य हरिद्वार में गंगा स्नान करते हैं उनके सारे पाप स्नान में धूल जाते हैं और उन्हें पुण्य की प्राप्ति होती है। इसके अलावा अगर किसी व्यक्ति का अंतिम संस्कार इस पवित्र स्थल पर किया जाता है तो उसकी आत्मा के स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं। इसी के साथ ही अगर किसी का भी तर्पण हरिद्वार के नारायणी शिला में किया जाता है तो इससे पितरों को सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है। हरिद्वार के महत्व को पुराणों में भी दर्शाया गया है और इसका वर्णन शास्त्रों में भी किया गया है। अगर पूर्वजों का पिंडदान यहां पर आयोजित किया जाता है तो उसकी आत्मा को स्थायी शांति की प्राप्ति होती है।
● उज्जैन- उज्जैन शहर भारत के मध्यप्रदेश राज्य में स्थित है। पूर्वजों के श्राद्ध और पिंडदान के लिए ये एक आदर्श स्थान माना जाता है। ये शहर शिप्रा नदी के तट पर बसा हुआ है। यहां पर पिंडदान का आयोजन भी शिप्रा नदी के तट पर ही किया जाता है। इस नदी के किनारे पिंडदान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है और इसका विशेष महत्व भी है। हर साल पितृ पक्ष में लाखों लोग उज्जैन में अपने पितरों का श्राद्ध करने के लिए आते हैं और उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना करते हैं।
● प्रयागराज– इस प्रमुख स्थान को पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था। यहां तीन नदियों का संगम देखने को मिलता है। यहां पर गंगा, यमुना एवं सरस्वती आपस में मिलती हैं और इस तीर्थस्थान को और भी महत्व प्रदान करती हैं। ऐसा माना जाता है कि जो मनुष्य यहां आकर डुबकी लगाते हैं उनकी डुबकी पुण्य की डुबकी हो जाती है और सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है। ऐसा माना जाता है कि यहां पर पिंडदान करने से आत्मा के वो सारे कष्ट दूर हो जाते हैं जिनसे एक आत्मा को मृत्यु के बाद गुजरना पड़ता है। यहां पर श्राद्ध करने से आत्मा जन्म- मरण के चक्र से एकदम मुक्त हो जाती है और सीधे मोक्ष को प्राप्त कर लेती है।
● वाराणसी- मंदिरों का शहर वाराणसी धार्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। वाराणसी शहर गंगा नदी के तट पर स्थित है। यहां हर साल लाखों लोग अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं। लोग काशी में गंगा नदी के तट पर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए हवन का आयोजन करवाते हैं। यहां के स्थानीय पंडित अनुष्ठान करते हैं और मंत्र जप करते हैं। वाराणसी शहर का महत्व पुराणों में भी देखने को मिलता है। इसके महत्व एवं यहां किये गए पिंडदान का महत्व शास्त्रों में भी वर्णित है।
● बोधगया- गया बिहार राज्य में स्थित है। हिंदू धर्म में इस स्थान को विशेष महत्व प्रदान किया गया है। यहां पर पिंडदान का आयोजन फल्गु नदी के तट पर किया जाता है। इसको भगवान विष्णु का अवतार भी कहा जाता है। इसकी बहुत मान्यता है। ऐसा माना जाता है कि शुद्धिकरण शक्तियों के लिए ये स्थान सबसे उत्तम और उपयुक्त है। हिंदू धर्म के पवित्र ग्रन्थों में इसका वर्णन किया गया है। महाभारत और रामायण में भी इस स्थान का उल्लेख गयापुरी के नाम से किया गया है। यहां पर लगभग 48 ऐसे स्थान हैं जहां पर पिंडदान का आयोजन किया …