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garunpuran

मृत्यु एक ऐसा सच है जिससे कोई अगर चाहे तो भी वो मुंह नहीं मोड़ सकता है। हर इंसान जिसने धरती पर जन्म लिया है,  एक न एक दिन दुनिया को अलविदा कहकर जाना ही होगा। जब तक जीवन रहता है तब तक हर व्यक्ति निरंतर अपनी अपनी क्रिया करता है। यही क्रिया व्यक्ति के कर्मों का निर्धारण करती हैं। जिसने अपने जीवन में अच्छे काम किये होते हैं उसे मृत्यु के बाद उसके अच्छे कर्मों के हिसाब से स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है। वहीं जिसने अच्छे कर्म नहीं किये होते हैं, उन्हें मृत्यु के बाद अपने कर्मों का हिसाब देना होता है और मृत्यु के बाद उनकी दशा अच्छी नहीं रहती है। मृत्यु के बाद ऐसे लोगों को नरक लोक की प्राप्ति होती है। इसीलिए आपने अक्सर अपने आसपास लोगों को ये कहते हुए सुना होगा कि जब तक जीवन है तब तक अच्छे कर्म करके पुण्य कमा लो।

अलग अलग धर्मों में कर्मों को लेकर अलग अलग मान्यता है। वहीं मृत्यु को लेकर भी हर धर्म के अपने अलग अलग रीति रिवाज हैं। अगर बात करें हिंदू धर्म की तो हिंदू धर्म में अगर परिवार के किसी भी सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो उसके बाद उसका अंतिम संस्कार उसकी संतान के द्वारा किया जाता है। जब किसी व्यक्ति संतान नहीं रहती है तो ऐसी दशा में परिवार के ही किसी सदस्य को अंतिम संस्कार की विधि को पूरा करना चाहिए। ऐसा करने से उस व्यक्ति को सदगति की प्राप्ति होती है। लेकिन कई बार ऐसी स्तिथि भी हो जाती है कि पारिवारिक जन मृत्यु के बाद मृतक के पास नहीं मौजूद होते हैं और तुरंत अंतिम संस्कार को किया जाना संभव नहीं होता है। इस स्तिथि में मृतक के शरीर को अंतिम संस्कार होने की उचित व्यवस्था तक रखना पड़ जाता है। फिर चाहे दिन हो या रात शव को कभी भी अकेला नहीं छोड़ा जाता है। लेकिन मृत्यु के बाद ऐसा क्यों किया जाता है? क्या आप जानते हैं? आज हम आप सभी को इसी के बारे में बताने जा रहे हैं।

● शरीर से कैसे निकलते हैं प्राण?

गरुण पुराण में ऐसा बताया गया है कि जिस व्यक्ति की मृत्यु होने वाली होती है, उस समय वो व्यक्ति बोलना चाहता है लेकिन बोल नहीं पाता है। जब व्यक्ति का अंत समय आ जाता है तो उस समय उसकी जितनी भी सुनने और देखने की इंद्रियां होती हैं वो सभी नष्ट हो जाती हैं। इसके बाद व्यक्ति की चेतना विलुप्त हो जाती है और वो हिलने डुलने में भी असमर्थ हो जाता है। बस उसी समय यमलोक से दो यमदूतों को भेजा जाता है आत्मा को लेने के लिए। जब व्यक्ति अचेतन स्तिथि में आ जाता है तो उसके शरीर से एक अंगूठे के बराबर आत्मा निकलती है और इसको यमदूत तुरंत पकड़ लेते हैं।

● मृत्यु के बाद क्यों मृतक के शरीर को अकेला नहीं छोड़ा जाता है?

मृत्यु के बाद क्या और कैसे होना चाहिए, ये सब कुछ गरुण पुराण में बताया गया है। जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसके अंतिम संस्कार से पहले बहुत सारे रीति रिवाजों का पालन किया जाता है। अगर ऐसी स्तिथि आ जाती है कि व्यक्ति का अंतिम संस्कार तुरंत करना संभव नहीं होता है तो ऐसे में व्यक्ति का अंतिम संस्कार रात में नहीं किया जा सकता है। फिर अगले दिन ही व्यक्ति का अंतिम संस्कार किया जाता है। साथ ही मृत शरीर को रात में अकेला नहीं छोड़ा जा सकता है। गरुण पुराण के अनुसार अगर मृत शरीर को रात में अकेले छोड़ दिया जाता है तो बहुत सारी परेशानियां आ जाती हैं। ये तो हम सभी जानते हैं कि रात में बुरी आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं। ऐसे में जब वो मृत शरीर को अकेला पाती हैं तो वो उसमें प्रवेश कर जाती हैं और इसके बाद बहुत सारी परेशानियां उतपन्न करने लगती हैं।

इसके अलावा यह भी माना जाता है कि जब इंसान की मृत्यु हो जाती है तो उसके बाद उसकी जो आत्मा होती है वो वहीं आसपास मंडराती रहती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जो आत्मा होती है वो अपने शरीर को छोड़कर जाना नहीं चाहती है। आत्मा को अपने शरीर से बहुत ज्यादा लगाव रहता है। ऐसे में वो शव के आसपास ही भटकती रहती है। फिर जब आत्मा वहीं भटकती रहती है और अपने किसी भी परिजन को अपने शव के पास नहीं देखती है तो उसको बहुत ज्यादा दुख होता है। ऐसे में शव को अकेला नहीं छोड़ा जाता है। वहीं यदि शव को अकेला छोड़ दिया जाता है तो जितने भी छोटे कीड़े मकोड़े हैं जैसे चींटी, मक्खी आदि, इनके आने का खतरा बना रहता है। इसीलिए घर के लोगों को शव के पास बैठकर उसकी निगरानी करनी चाहिए।

● दाह संस्कार दिन के समय में ही क्यों किया जाना चाहिए?

अभी हमने आप सभी को बताया कि अगर स्तिथि वैसी नहीं है कि तुरंत अंतिम संस्कार किया जा सके, तो ऐसे में व्यक्ति के शव को रात भर रखा जाता है। कभी भी रात में अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है। इसको लेकर शास्त्रों में भी बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार जब भी दाह संस्कार किया जाए तो वो दिन के समय में ही किया जाना चाहिए। जो दहन कर्म होता है वो एक तमोगुणी प्रक्रिया होती है। जो रात होती है वो तमोगुण से ही जुड़ी हुई होती है। ऐसे में अगर दहन संस्कार रात में किया जाएगा तो तमोगुणी अनिष्ट शक्तियों की जो मात्रा होगी उसमें वृद्धि हो जाएगी। साथ ही अंतिम संस्कार की पूरी प्रक्रिया पूरे रीति रिवाज के साथ करनी चाहिए। अगर पूरे विधि विधान से किसी का अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है तो व्यक्ति की आत्मा तृप्त नहीं होती है और बाद में घर के परिजनों को बहुत सारी परेशानी उठानी पड़ती है।

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