जब से बच्चे में सुनने और देखने की समझ आती है तभी से बच्चा बस ये सुनता आता है कि मनुष्य को अच्छे ही कर्म करने चाहिए। अच्छे कर्मों का फल अच्छा होता है और मरने के बाद स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है। वहीं जो लोग बुरे कर्म करते हैं उन्हें उनके बुरे कर्मों का फल भी इसी जन्म में भोग कर जाना होता है। ऐसा भी नहीं है कि कर्मों के फल को इस जन्म में भोग लेने के बाद, जब इंसान की मृत्यु होती है तो उसे मुक्ति मिल जाती है। बल्कि मरने के बाद तो सफर और भी कठिन हो जाता है। अगर आपने कर्म अच्छे नहीं किये हैं तो मरने के बाद आपको नर्क लोक में जाना होता है। आप बचपन से ही स्वर्ग लोक और नर्क लोक के किस्सों को सुनते आ ही रहे हैं। आपके आसपास के जो लोग ऐसी बातें करते हैं, ऐसा नहीं है कि वो काल्पनिक बातें करते हैं। कुछ हद तक लोगों की बातें सही होती हैं। हमारे जो पुराण हैं उनमें भी मृत्यु और जीवन के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है।
गरुण पुराण के बारे में
गरुण पुराण के बारे में तो हम सभी जानते ही हैं। गरुण पुराण में मृत्यु और मृत्यु के बाद की दशा को भी संक्षिप्त में दर्शाया गया है। इसीलिए इसको सनातन धर्म में महापुराण का भी दर्जा दिया गया है। इस पुराण में श्रीहरि और भगवान विष्णु का जो वाहन है गरुण उनके बीच की वार्तालाप को लोगों से बताया गया है। इस वार्तालाप के जरिए ही लोगों को सदाचार, जीवन जीने का तरीका, यज्ञ, तप, सदाचार, वैराग्य, भक्ति आदि का जो भी महत्व है, उसे समझाया गया है। इसके अलावा इसमें आपको आपके कर्म के अनुसार जो भी फल मिलते हैं उनके बारे में भी बताया गया है। आपके कर्म के अनुसार ही इसमें स्वर्ग लोक और नर्क लोक में जाने को लेकर भी बातें कही गई हैं।
ये तो निश्चित ही है कि जिस व्यक्ति ने इस धरती पर जन्म लिया है, उसे दुनिया को छोड़कर एक न एक दिन जाना ही होगा। हर व्यक्ति को मृत्यु प्राप्त होती ही है। एक तरह से ये कहा जा सकता है कि मृत्यु एक ऐसा कड़वा सच है जिससे अगर इंसान चाहे तो भी वो मुंह नहीं फेर सकता है। जो भी चीज़ें हमारे जीवन जीते हुए घटती हैं, हम उन्हें देखते हैं और उन्हें महसूस भी करते हैं। लोगों को हर स्तिथि को देखने का अपना अलग एक नज़रिया होता है। लेकिन ये नज़रिया ही बाद में हमारा कर्म बन जाता है और फिर यही कर्म यह निश्चित करते हैं कि व्यक्ति को स्वर्ग लोक में जाना है या फिर नर्क लोक में जाना है।
जीवन की तमाम घटनाएं हमारे सामने होती हैं इसीलिए हमें सबकी खबर होती है लेकिन मृत्यु के बाद क्या होता है इसके बारे में किसी को भी कोई जानकारी नहीं है, बस सबकी एक अपनी धारणा है मृत्यु को लेकर। अब स्वर्ग और नर्क की बातें कितनी सही हैं या कितनी गलत हैं, इनके बारे में कह पाना ज़रा सा मुश्किल है। लेकिन हां अगर आपने गीता का पाठ कभी पढ़ा होगा तो आपको ये ज़रूर पता होगा कि गीता में श्रीकृष्ण ने एक बात कही थी कि, ‘जो आत्मा होती है, उसका कभी अंत नहीं होता है।’ जिस तरह से एक व्यक्ति पुराने कपड़ों को बदलकर नए कपड़ों को धारण करता रहता है, ठीक इसी प्रकार से आत्मा भी पुराने शरीर को छोड़कर नए शरीर को धारण कर लेती है।
अभी हमने आप सभी से गरुण पुराण की बात की। इसमें मृत्यु की हर एक दशा का वर्णन किया गया है। इसमें मृत्यु के बाद आत्मा की जो तमाम स्तिथियां होती हैं, उनके बारे में भी बताया गया है। आइये गरुण पुराण के अनुसार मरने के बाद का जो सफर है, उसके बारे में थोड़ा सा जान लेते हैं।
● मृत्यु के बाद का सफर;-
जैसा कि अभी हमने बताया कि आत्मा कभी मिटती नहीं है। बस वो एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में अपना वास कर लेती है। जब किसी की मृत्यु होती है तो उस समय बस केवल व्यक्ति का जो पंचतत्वों से बना हुआ शरीर होता है, वही समाप्त होता है। अब जब ऐसी स्तिथि हो जाती है तो एक सवाल हम सभी के सामने यह आ जाता है कि जब सिर्फ शरीर का ही नाश होता है तो उसमें बसी जो आत्मा है वो कहां जाती है? अब इसका उत्तर जानने के लिए हमें गरुण पुराण के पन्नों को थोड़ा पलटना होगा।
◆ आत्मा जाती है यमलोक-
जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसको लेने के लिए यमलोक से दो यमदूतों को भेजा जाता है। ये जो यमदूत होते हैं, ये देखने में काफी ज्यादा भयंकर होते हैं। जो व्यक्ति पुण्य करने वाले होते हैं, उनके प्राण निकलने में ज्यादा कठिनाई नहीं होती है और उनके प्राण आसानी से निकल जाते हैं। लेकिन जो ऐसे लोग होते हैं जिन्होंने पुण्य नहीं किया होता है और जीवन भर पाप किये होते हैं, उनके प्राण बहुत ही मुश्किल से निकलते हैं और जब उनके प्राण निकलते हैं तब उन्हें काफी कष्ट झेलना पड़ता है। बस इसी के बाद आत्मा का यमलोक का सफर शुरू हो जाता है और यमराज आत्मा को यमलोक तक ले जाते हैं। जैसे ही यमदूत आत्मा को लेने आते हैं, वैसे ही आत्मा शरीर को छोड़ देती है।
आत्मा को ले जाकर यमदूत यमलोक में 24 घण्टे के लिए रखते हैं। इसके बाद उस वक़्त में आत्मा को ये दिखाया जाता है कि उसने जीवन में कौन कौन से अच्छे और कौन कौन से खराब कर्म किए। फिर उसको उसी घर में छोड़ दिया जाता है जहां उसका जीवन व्यतीत हुआ होता है। यानी जब तक तेरहवीं नहीं होती तब तक 13 दिनों तक आत्मा अपने परिजनों के साथ ही रहती है। जब 13 दिन पूरे हो जाते हैं उसके बाद फिर से आत्मा को यमलोक के लिए रवाना होना पड़ता है।
इसी बीच उसे तीन अलग अलग मार्ग दिए जाते हैं। एक मार्ग स्वर्ग लोक का होता है, दूसरा मार्ग नर्क लोक का और तीसरा मार्ग पितृ लोक का होता है। अब इनमें से किस मार्ग पर आत्मा को भेजा जाएगा, ये व्यक्ति के जीवनकाल के दौरान किये गए कर्मों के द्वारा ही निर्धारित किया जाता है। फिर जब आत्मा पाप और पुण्य का जो निर्धारित समय होता है उसे भोग लेती है तो उसको फिर से दूसरे शरीर की प्राप्ति हो जाती है।