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मृत्यु एक ऐसा सत्य है, जिसके बारे में बात करने से लोग बचना चाहते हैं। लेकिन अगर बात नहीं करेंगे तो इसके बारे में जानेंगे कैसे। इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया है, उसे एक न एक दिन इस दुनिया को छोड़कर जाना ही होगा। कोई भी हमेशा जीवित नहीं रहता है। जीवन और मृत्यु एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। अगर किसी को जीवन मिला है तो यह तय है कि उसका अंत भी एक न एक दिन होकर रहेगा। वहीं मृत्यु होने के बाद व्यक्ति को दूसरा जन्म मिलता है, ऐसे में जब तक मृत्यु नहीं होगी तब तक किसी को नया जन्म कैसे मिलेगा। यही कारण है कि दोनों एक दूसरे के पूरक के तौर पर जाना है।

पिंड दान की विधि

एक ओर जब बच्चा जन्म लेता है तो हर तरफ खुशी का माहौल होता है, दूसरी तरफ जब किसी की मृत्यु होती है तो हर तरफ उदासी छाई रहती है। जन्म होते समय इंसान इस धरती पर अकेले ही आता है। एक नए जन्मे बच्चे को दुनियादारी की कोई समझ नहीं होती है। वो नादान बच्चा मोह माया से बिल्कुल अंजान होता है और सभी बंधनों से मुक्त रहता है। फिर धीरे- धीरे बच्चा बड़ा होने लगता है और जैसे जैसे वो बड़ा होता है उसके ऊपर ज़िम्मेदारियों का बोझ आ जाता है। धीरे धीरे वो मोह माया में लिपट जाता है और ढेर सारे बंधनों में बंध जाता है। ये सब मोह माया ही तो है जिसमें इंसान हमेशा बंधा ही रहता है और अगर चाहे तो भी बाहर नहीं आ पाता है। फिर व्यक्ति के जीवन में एक ऐसा दिन भी आता है जब उसकी सांसें थम जाती हैं और उसमें जान ही नहीं बचती है। ये समय मृत्यु का होता है। इंसान जब मृत्यु को प्राप्त होता है तो वो बस अपने शरीर को त्याग देता है। उसके शरीर में जो आत्मा होती है वो कभी भी खत्म नहीं होती है। मृत्यु होने के बाद व्यक्ति का सफर खत्म नहीं होता है। बल्कि मृत्यु होने के बाद ही आत्मा का मृत्युलोक तक का जो सफर होता है वो शुरू होता है।

यहां सफर सिर्फ इंसान के शरीर का समाप्त होता है। उसकी आत्मा तो हमेशा ही सफर में रहती है। इंसान की मृत्यु के बाद उसके परिवार के लोगों को कुछ ज़िम्मेदारियों को निभाना होता है। इसीलिए कहा जाता है कि मृत्यु के बाद के कर्मों को पूरे रीति रिवाज के साथ करना चाहिए वरना आत्मा तृप्त नहीं होती है और मुक्त न होने की वजह से आत्मा भटकती रहती है। साथ ही ये अपने आसपास के लोगों को परेशान करती रहती है।  तो आप सभी जानते ही हैं कि आत्मा को मृत्यलोक का सफर तय करना होता है। ऐसे में ये ज़रूरी है कि मरने के बाद व्यक्ति का श्राद्ध और पिंडदान किया जाए। इसके बिना आत्मा के अंदर ताकत नहीं आती है कि वो अपना आगे का सफर तय कर सके। उसके सारे कर्मों का हिसाब किताब होता है और उसे रास्ते में बताया जाता है कि उसने अपने पूरे जीवनकाल में क्या क्या किया है।

पिंडदान में उपयोग होने वाली आवश्यक सामग्री;-

श्राद्ध पक्ष के दौरान ऐसा माना जाता है कि जो पितर होते हैं वो अपने अपने कुल को वापस चले जाते हैं। पितृ पक्ष के दौरान पिंडदान करने से पितर तृप्त होते हैं और इसी के साथ ही वो घर में अच्छी संतान के होने का आशीर्वाद भी प्रदान करते हैं। इसीलिए श्राद्ध करना बहुत ज्यादा जरूरी होता है। जो लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध और पिंडदान नहीं करते हैं उनकी पितरों की आत्मा कभी तृप्त नहीं होती है। उनकी आत्मा अतृप्त ही रहती है। ऐसे में ये जानना बहुत आवश्यक है कि श्राद्ध में किन सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। क्योंकि हम आपको पहले भी बता चुके हैं कि श्राद्ध को पूरे विधि विधान से ही किया जाना चाहिए अन्यथा इसको करने का कोई फायदा नहीं होता है।

श्राद्ध तर्पण

श्राद्ध में तर्पण करने के लिए तिल, जल, चावल, कुशा, गंगाजल आदि का उपयोग अवश्य ही किया जाना चाहिए। वहीं यदि आप उड़द, सफेद पुष्प, केले, गाय के दूध, घी, खीर, स्वांक के चावल, जौ, मूंग, गन्ने आदि का इस्तेमाल करते हैं श्राद्ध में तो इससे आपके पितर प्रशन्न होते हैं और घर में सुख शांति बनी रहती है। पितृ पक्ष में आप तुलसी और पीपल के पेड़ पर जल ज़रूर अर्पित करें। साथ ही पितृ पक्ष में सूर्यदेव को भी अर्ध्य अवश्य दें।

पिंडदान करने के लिए आप निम्न बातों का विशेष ध्यान रखें-

◆ जब भी मृत व्यक्ति के घरवाले मृतक का पिंडदान करें तो सबसे पहले चावल या फिर जौ के आटे में दूध और तिल को मिलाकर उस आटे को गूथ लें। इसके बाद उसका गोला बना लें।

◆ जब भी आप तर्पण करने जाएं तो ध्यान रखें कि आप पीतल के बर्तन लें या फिर पीतल की थाली लें। उसमें एकदम स्वच्छ जल भरें। इसके बाद उसमें दूध व काला तिल डालकर अपने सामने रख लें। इसी के साथ अपने सामने आप एक और खाली बर्तन भी रखें।

◆ अब आप अपने दोनों हाथों को मिला लें। इसके बाद मृत व्यक्ति का नाम लेकर तृप्यन्ताम बोलते हुए अंजुली में भरे हुए जल को सामने रखे खाली बर्तन में डाल दें।

◆ जल से तर्पण करते समय आप उसमें जौ, कुशा, काला तिल और सफेद फूल अवश्य मिला लें। इससे मृत आत्मा को शांति मिलती है। ऐसा करने से पितर तृप्त हो जाते हैं।

◆ बस इसके बाद आप ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और उन्हें दान दक्षिणा दें।

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