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जिस इंसान ने इस धरती पर जन्म लिया है, उन सबको एक न एक दिन इस दुनिया को छोड़कर जाना ही है। इस धरती पर कोई भी अमर होकर नहीं आया है। एक दिन सभी की मृत्यु होना तय है। जन्म और मृत्यु एक ऐसा सच है जिसे कोई झुठला नहीं सकता है। तो आईये आज हम जानते हैं व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत उसकी अंत्योष्टि क्रिया का क्या महत्व है तथा इसको विधिवत तरीके से क्यों किया जाना चाहिए।

हिन्दू धर्म में अंत्योष्टि संस्कार का महत्व-

हिन्दू धर्म में अंत्योष्टि संस्कार को अंतिम संस्कार या दाह संस्कार कहा जाता है। जिसमें अंत्योष्टि का मतलब अंतिम यज्ञ होता है। यह हिन्दू संस्कार के 16 संस्कारों में से एक तथा अंतिम संस्कार है। जब व्यक्ति की आत्मा उसके शरीर को छोड़ देती है उसके तुरन्त बाद अंत्योष्टि संस्कार किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अंतिम संस्कार करने से मृतक की अधूरी वासनाएं शांत हो जाती हैं, तथा वह सभी मोह माया को त्याग कर पृथ्वीलोक से परलोक की तरफ जाता है। हिन्दू धर्म में व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसको मुखाग्नि दी जाती है तथा शरीर को अग्नि की चिता पर जलाया जाता है। पूरा शरीर जल जाने के बाद अस्थियों को जमा किया जाता है जिसे हिन्दू धर्म में फूल चुगना भी कहते हैं। हिन्दू धर्म में अंतिम संस्कार मृतक के परिजनों द्वारा बहुत ही विधि-विधान से किया जाता है। जिसमें मृतक के माता-पिता, पुत्र, पति-पत्नी,मामा, चाचा, सगोत्र आदि को इस कार्य का दायित्व लेना चाहिए तथा विधि- विधान से मृतक का दाह-संस्कार किया जाता है और इन सबका अपना एक धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व होता है।

अंत्योष्टि क्रिया तथा शव संस्कार करने की विधि-

  1. जो भी व्यक्ति अंत्योष्टि क्रिया को करेगा उसको दक्षिण दिशा में मुख कर के बैठना चाहिए।
  2. गंगाजल से मृतक के शरीर को नहलाएं।
  3. मृतक को नए वस्त्र पहनाएं।
  4. चंदन व फूल से मृतक के शरीर को सजाएं।
  5. इसके बाद हाथों में फूल, चावल तथा जल ले कर मंत्र का जाप करते हुए अंतिम संस्कार का संकल्प करें।
  6. मृतक की शैय्या की सजावट करने के लिए फूल रखें।
  7. इसमें पिंडदान भी किया जाता है जिसके लिए चावल, जौ, तिल तथा आटे का एक मिश्रण बना लें।
  8. पूजन के लिए आरती की थाल, चावल, रोली, धूपबत्ती/ अगरबत्ती, हवन सामग्री, सुखी तुलसी, चंदन आदि।
  9. अंतिम पूर्णाहुति देने के लिए श्रीफल/नारियल के गोले में घी भरें तथा आहूति देने के लिए नारियल को किसी लम्बे बांस में बांधें जिससे आसानी से आहुति दी जा सके।

ये सभी कार्य करने के बाद मृतक को नहला-धुलाकर नए वस्त्र पहनाकर तैयार की गई शैय्या पर लिटा दिया जाता है। अंदर सभी कार्य ( पिंडदान, शव संस्कार, तथा संकल्प आदि) करने के उपरांत मृतक के शरीर को बाहर लाया जाता है तथा पुष्पांजलि देने के बाद श्मशान की यात्रा को शुरू किया जाता है।

शव यात्रा को प्रारंभ करने की विधि-

अंत्योष्टि संकल्प के बाद सबसे पहले पिंडदान के पश्चात मृतक के शव को शैय्या पर लिटा दें तथा शव पर पुष्प अर्पित करते हुए अंतिम यात्रा प्रारंभ करें।

अंतिम संस्कार के साथ पांच पिंडदान किये जाते हैं

  1. सबसे पहला पिंडदान घर के अंदर इसमें पिंड को कमर अर्पित की जाती है।
  2. दूसरा पिंडदान घर के बाहर शैय्या पर इसमें पिंड को वक्ष अर्पित किये जाते हैं।
  3. तीसरा पिंडदान शव मार्ग इसमें पिंड को पेट अर्पित किया जाता है।
  4. चौथा पिंडदान श्मशान में इसमें पिंड को छाती अर्पित की जाती है।
  5. पांचवां पिंडदान चिता जलने के बाद इसमें पिंड को सिर अर्पित किया जाता है।

श्मशान घाट पर पहुंचने के बाद शव को उपयुक्त स्थान पर रख देना चाहिए तथा चिता सजाने के लिए स्थान को साफ करें। इन सब कार्य को करने के लिए अंत्योष्टि करने वाले व्यक्ति को जाना चाहिए तथा भूमि की परिक्रमा करके उसका नमन करना चाहिए। चितारोहण एक यज्ञ प्रक्रिया है इसके लिए आम, शमी,वट, गूलर यदि संभव हो सके तो चंदन की लकड़ी आदि का ही उपयोग करना चाहिए। इसके बाद शव को चिता शैय्या पर लिटा दें तथा चिता में अंगार या कोयले रखकर जलाएं। अग्नि को लेकर चिता की एक परिक्रमा करें तथा अग्नि को मुख के पास ऐसे रखें जिससे आसानी से आग चिता में लग जाये।

अग्नि जलने के बाद सात बार घी की आहुति दें तथा सभी लोगों को हवन सामग्री की आहुति देते हुए गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए। सभी लोगों को प्रार्थना कपाल क्रिया (जब अग्नि खोपड़ी की हड्डियों को पकड़ ले) पूर्ण होने तक करनी चाहिए। इसके बाद अंत्योष्टि करने वाला व्यक्ति बांस ले कर चिता के सिर की तरफ खड़ा हो जाये तथा बांस की नोक के दबाव से सिर का मध्य भाग खुलने के बाद उसमें छेद करें तथा पूर्णाहूति के गोले को सिर के पास रख के सभी पूर्णाहूति दें। इस क्रिया के बाद सभी लोगों को लौट जाना चाहिए। अस्थियों को तीसरे दिन उठाने का विधान होता है। उसके बाद इनको किसी पवित्र नदी में प्रवाहित किया जाता है।

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