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मुंडन संस्कार

हम सबकी किस्मत में ये पहले से ही लिखा होता है कि हम कितने दिनों तक धरती पर जीवित रहेंगे। इसके बाद धरती पर हम जो कर्म करते हैं, वो ये निर्धारित करते हैं कि हमें स्वर्ग लोक की प्राप्ति होगी या फिर नरक लोग की। इसीलिए कहा जाता है कि हमें हमेशा अच्छे ही कर्म करने चाहिए ताकि स्वर्ग लोक की प्राप्ति हो। स्वर्ग लोग में जो आत्माएं जाती हैं उन्हें किसी भी तरह के कष्ट को नहीं सहना पड़ता है और आत्मा तृप्त हो जाती है। वहीं जो आत्मा नरक लोक को प्राप्त होती है उसे बहुत सारे कष्टों को सहना पड़ता है। मरने के बाद उसके सारे बुरे कर्मों का बदला उस आत्मा से लिया जाता है। इसीलिए जीवित रहते हमें अच्छे कर्म ही करने चाहिए।

फिर जिस दिन हमारे शरीर से प्राण निकलते हैं, उस दिन हम मोह माया की दुनिया से मुक्त हो जाते हैं। फिर मरने के ततपश्चात मृत शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है। मृत व्यक्ति जिस धर्म का होता है, उसका उसी के धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार किया जाता है। अगर कोई हिंदू धर्म में जन्मा है तो उसके मृत शरीर को मुखाग्नि दी जाती है, वहीं मुस्लिम धर्म में जन्म लेने वाले व्यक्ति का संस्कार, मृत शरीर को कब्र में दफना कर किया जाता है। अंतिम संस्कार के बाद दोनों ही धर्म में भोज आदि का आयोजन भी किया जाता है। हिंदू धर्म में ही मृत्यु के बाद एक कर्म विशेष तौर पर किया जाता है जिसे चूड़ाकर्म या फिर मुंडन के नाम से भी जाना जाता है। आज हम आप सभी को इसी के बारे में बताएंगे। इस लेख में आप सभी को हम बताएंगे कि मुंडन संस्कार को करने का क्या महत्व है और क्यों किया जाता है।

● मुंडन संस्कार क्यों किया जाता है?

हिंदू धर्म में रीति रिवाजों को बहुत मान्यता प्रदान की गई है। इस धर्म में बच्चे के जन्म से लेकर एक व्यक्ति के देहांत तक अलग- अलग रस्मों का पालन किया जाता है। हमेशा व्यक्ति इन रस्मों में ही बंधकर रह जाता है। जब किसी की मृत्यु होती है उसके बाद उसके परिवार के लोग कुछ रस्मों और विधियों को निभाते हैं। ऐसा करने से माना जाता है कि आत्मा मुक्त हो पाती है अन्यथा आत्मा मुक्त नहीं हो पाती है और यहीं धरती पर ही भटकती रहती है। ऐसे में हिंदू धर्म में ये बहुत ही आवश्यक है कि जब किसी की मृत्यु हो जाए तो उस मृत व्यक्ति के परिजन सारे रीति रिवाजों का पालन करें।

हिंदू धर्म में चूड़ाकर्म संस्कार या फिर मुंडन संस्कार को भी विशेष मान्यता प्रदान की गई है। यह कर्म मृत्यु के समय किया जाता है। मृत्यु के समय इस कर्म का किया जाना आवश्यक होता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जब किसी के पार्थिव शरीर को जलाया जाता है तो उसमें जो जीवाणु होते हैं वो हमारे शरीर में आकर चिपक जाते हैं। सिर में जो जीवाणु चिपक जाते हैं उन्हें ऐसे नहीं निकाला जा सकता है। इसीलिए मुंडन कर्म का किया जाना आवश्यक माना जाता है क्योंकि ऐसा करने से वो जीवाणु पूरी तरह से बालों के साथ निकल जाते हैं। इसी के साथ नदी में नहाने या धूप में बैठने का भी विशेष महत्व है ताकि जो जीवाणु मृत शरीर को जलाते समय आपके पास आकर चिपक गए हों, वो आपसे दूर जा सकें और आपको उनसे किसी भी प्रकार की कोई हानि न हो।

मुंडन कर्म को घर के पुरुषों के द्वारा किया जाता है। ये एक अस्थायी कर्म होता है। यह मुख्य तौर पर एक विशिष्ट अवधि के शोक के लिए किया जाता है। जैसा कि हम आपको बता चुके हैं कि मुंडन संस्कार करने से इंसान पवित्र होते हैं। ये एक प्रकार से शुद्धता की निशानी के तौर पर जाना जाता है। ये विशेष तौर पर उन पुरुषों को ज़रूर करना चाहिए जिनके द्वारा अंतिम संस्कार विधि को या अंत्येष्टि को सम्पन्न किया गया हो। पहले के समय में आज के जमाने जैसी सुविधाएं तो मौजूद थीं नहीं। ऐसे में लोग मुंडन संस्कार करा कर ही अपने करीबी और संबंधियों को ये खबर देते थे।

ऐसे में सामने वाला व्यक्ति सिर पर बाल न रहने की वजह से बिना कहे ही दुखद समाचार को समझ जाता था। इस कर्म को करने से ये भी समझा जाता है कि मृत व्यक्ति के बचे हुए कर्तव्यों को पूरा करने के लिए उसके परिजन तैयार हैं। यह क्रम इसीलिए भी किया जाता है कि ताकि मृत आत्मा जब देखे तो उसे ये बोध हो कि मरने के बाद उसके परिजनों ने उसे सम्मान के साथ विदा किया है और उसके द्वारा किए गए कामों की सराहना की गई है। इन सभी कारणों की वजह से इस कर्म का किया जाना आवश्यक है।

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