जीवन और मृत्यु ये हमारी इच्छा से नहीं होता है। सबका समय पहले से ही निर्धारित रहता है। जिसका जन्म हुआ है उसको एक दिन इस दुनिया को छोड़ना ही होगा। फिर चाहे व्यक्ति की इच्छा हो या न हो इस दुनिया से जाने की। जीवन और मृत्यु में आपकी सोच के हिसाब से कुछ भी नहीं होता। न ही कोई यहां अमर होकर के आता है। ये सब तक मोह माया है जो इंसान को सांसारिक बंधन से मुक्त ही नहीं होने देना चाहता है।
मनुष्य की आखिरी सांस तक मोह ही उसे अपने वश में करके रखती है। जब मनुष्य की सांसें थम जाती हैं उसके बाद ही वो संसार के सारे बंधनों से मुक्त हो पाता है। फिर मरने वाला व्यक्ति तो बंधनों से तो मुक्त हो जाता है लेकिन उसके परिजनों के बंधन और बढ़ जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि मरने के बाद बहुत सारे नियमों का पालन करना होता है। अगर इन नियमों का पालन न किया जाए तो ऐसा माना जाता है मृत व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है और उसकी आत्मा यहीं धरती पर ही भटकती रह जाती है।
अलग- अलग धर्म में मरने के बाद के जो नियम होते हैं वो अलग- अलग होते हैं। जो जिस धर्म का है, उसका उसी धर्म के अनुसार ही अंतिम संस्कार किया जाता है। अगर हम बात करें हिंदू धर्म की तो हिंदू धर्म में मरने के बाद मृत शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है। इसके बाद तेरहवीं का आयोजन किया जाता है। जिसमें लोगों को भोज के लिए आमंत्रित किया जाता है। वहीं मुस्लिम वर्ग में मरने के बाद अलग नियमों का पालन किया जाता है। क्या आप जानते हैं कि मुस्लिम समाज में मरने के उपरांत क्या किया जाता है?
मरने के उपरांत मुस्लिम वर्ग में क्या किया जाता है?
मुस्लिम वर्ग में जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसे भी उसके कर्मों के अनुसार ही जन्नत या जहन्नुम में ले जाया जाता है। जन्नत और जहन्नुम का निर्धारण पहले ही हो जाता है। व्यक्ति जीवन में जो कर्म करता है, उसी के हिसाब से उसकी मृत्यु के बाद उसे जगह दी जाती है। अगर मुस्लिम व्यक्ति ने किसी बेजुबान की हत्या, धर्म मे कुछ गलतियां, या फिर किसी भी तरह की कोई हिंसा की होती है तो ऐसे व्यक्ति को जहन्नुम में ले जाया जाता है।
जहन्नुम में व्यक्ति को उसके कर्मों के हिसाब से सजा दी जाती है और कहा जाता है कि वहां पर उनके साथ बुरा बर्ताव किया जाता है और उन्हें उनके बुरे कर्मों के लिए मारा पीटा भी जाता है। जो व्यक्ति जीवित रहते दूसरे धर्म का सम्मान करते हैं, आपस में भाईचारा रखते हैं, किसी बेजुबान को नहीं मारते हैं और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार न करके उनका सम्मान करते हैं, ऐसे व्यक्तियों को जन्नत में जगह दी जाती है। जन्नत में उनका अच्छे से ख्याल रखा जाता है।
इसके अलावा जिस तरह से हिंदू समाज में मरने के बाद मृत्यु भोज कराया जाता है, ठीक वैसे ही मुस्लिम समाज में भी मरने के बाद मृत्यु भोज कराने का नियम है। इसको ‘चेहल्लुम’ के नाम से भी जाना जाता है। चेहल्लुम में गरीब वर्ग के लोगों को भोजन कराने का नियम है। इसका आयोजन व्यक्ति की मृत्यु होने के 40 दिन पश्चात किया जाता है। वैसे तो चेहल्लुम का जो भोजन होता है उस पर सिर्फ और सिर्फ गरीबों का हक होता है लेकिन पहले के समय में अमीर वर्ग के लोग भी यह भोजन खाया करते थे। फिर धीरे- धीरे समय बदला और लोग काफी जागरूक हो गए जिसके चलते अब अमीर वर्ग के लोगों ने चेहल्लुम में भोजन करना छोड़ दिया है।
इस्लाम में चेहल्लुम का महत्व क्या है?
इस्लाम धर्म में इसकी विशेष मान्यता है। ऐसा माना जाता है कि अगर मरने वाले कि रूह को किसी नेक काम का सवाब यानी कि पुण्य पहुंचा दिया जाए तो वह उस तक ज़रूर पहुंचता है और फिर उसे जन्नत प्राप्ति होती है। यही कारण है कि चेहल्लुम का फातिहा किया जाता है। नियम तो यही है कि फातिहा का भोजन सिर्फ गरीब और ज़रूरतमंद व्यक्ति ही खा सकते हैं। इसी के साथ कई लोगों का ये भी मानना है कि चेहल्लुम के फातिहा में ज्यादा से ज्यादा ज़रूरतमंदों और गरीबों को भोजन कराना चाहिए।
लेकिन ऐसा नहीं है फातिहा में ज्यादा से ज्यादा लोगों को भोजन कराने का कोई भी नियम नहीं है। जिसकी जितनी इच्छा और जितनी हिम्मत हो वो उतने लोगों को भोजन के लिए आमंत्रित कर सकता है। वहीं अगर इस्लाम धर्म में किसी गरीब वर्ग के यहां किसी की मृत्यु हो जाती है तो मृत व्यक्ति के परिजन केवल फातिहा दिला सकते हैं। फातिहा दिलाने का नियम सभी के लिए अनिवार्य है। इस्लाम में फिजूलखर्ची के नियम को सही नहीं माना गया है और इसको नाजायज भी बोला गया है।
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