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ये तो हम सभी जानते हैं कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसके बाद उसका अंतिम संस्कार किया जाता है। अंतिम संस्कार का भी विशेष महत्व है। इसीलिए जब भी किसी की मृत्यु होती है तो उसके बाद पूरे विधि विधान और रीति रिवाजों का पालन करके ही मृत व्यक्ति का अंतिम संस्कार किया जाता है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि अगर पूरी विधि से मृत व्यक्ति का अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है तो फिर उसे मरने के बाद मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है। यही नहीं यह भी माना जाता है कि मरने के बाद व्यक्ति की आत्मा भटकती रहती है और उसे नया शरीर तब तक नहीं मिल पाता है जब तक उसका ठीक तरह से श्राद्ध आदि नहीं किया जाता है।

हर धर्म में अंतिम संस्कार को लेकर अलग अलग मान्यता है। अगर बात करें हिंदू धर्म की तो अगर हिंदू धर्म में किसी भी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसके शव को अग्नि दी जाती है और बाद में उसकी अस्थियों को गंगा जी में प्रवाहित कर दिया जाता है। वहीं अगर हिंदू धर्म में किसी बच्चे की मृत्यु होती है तो उसको जलाया नहीं जाता है। बल्कि उसको पूरे हिंदू रीति रिवाज के साथ मिट्टी में दफना दिया जाता है। इसी तरह से मुस्लिम धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसको जलाया नहीं जाता है बल्कि उसको भी दफनाया जाता है। ऐसे ही अलग अलग धर्म में अंतिम संस्कार को लेकर अलग अलग मान्यता है। क्या आप जानते हैं कि पारसी धर्म में अंतिम संस्कार किस तरह से किया जाता है? आगे इस लेख में हम आपको इसी के बारे में बताने जा रहे हैं।

● पारसी धर्म में कैसे किया जाता है अंतिम संस्कार?

दरअसल पारसी धर्म में अंतिम संस्कार करने का जो तरीका है वो बाकी धर्म से काफी अलग है। पारसी धर्म के लोगों को भारत के बाहर जोरास्ट्रीयन्स धर्म के नाम से भी जाना जाता है। जो लोग पारसी धर्म को मानते हैं वो लोग मृतक के शरीर को जलाते नहीं है बल्कि शवों को कौओं और गिद्धों का भोजन बना देते हैं। जब भी पारसी धर्म को मानने वाले किसी व्यक्ति की मौत होती है तो उसके शव को उसके घरवाले और समाज, उसे आसमान के हवाले कर देते हैं। इस धर्म में शव को न तो जलाने की परंपरा है और न ही शव को दफनाने का रिवाज है। बल्कि इस धर्म के लोग शव को ले जाकर ‘टावर ऑफ साइलेंस’ नामक एक जगह पर छोड़ देते हैं। यहां पर मृत व्यक्ति का शव चील, कौओं और चील आदि के लिए भोजन के रूप में काम करता है।

● टावर ऑफ साइलेंस क्या होता है?

एक तरह से हम यह कह सकते हैं कि जो पारसी धर्म के लोगों का कब्रिस्तान होता है, उसी को ‘टावर ऑफ साइलेंस’ के नाम से जाना जाता है। इसका जो आकार है, वह गोलाकार है। अगर भारत की बात करें तो भारत के मुंबई शहर के मालाबार हिल्स में एक टावर ऑफ साइलेंस स्थित है। इसको मुंबई शहर का सबसे पॉश एरिया माना जाता है। यह जगह पूरी तरह से जंगलों के बीच मे बसी हुई है। लोगों का मानना है कि इसका निर्माण 19वीं शताब्दी के आसपास कहीं हुआ था। इसमें बस एक ही दरवाजा है, जो कि लोहे का है। इस टावर का जो ऊपरी हिस्सा है वो खुला हुआ है और उसी हिस्से में शवों को रखा जाता है।

● दोखमेनाशिनी परंपरा क्या होती है?

ऐसा माना जाता है कि जो पारसी समुदाय के लोग हैं वो करीब 1000 वर्ष पहले भारत में आए थे। इस समुदाय के लोग पर्सिया से आए थे, इसीलिए इन्हें पारसी नाम दे दिया गया और ये पर्सिया से आकर भारत में बस गए। भारत में ज्यादातर जो पारसी धर्म के लोग हैं, वो मुंबई शहर में ही निवास करते हैं। आप सभी की जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि भारत देश के जाने माने बिजनेसमैन रतन टाटा भी इसी समुदाय से आते हैं। इसके अलावा भी कई बड़े बड़े बिजनेसमैन इसी धर्म से सम्बंध रखते हैं। पारसी धर्म के लोग अपने सगे संबंधियों के शव को टावर ऑफ साइलेंस पर ले जाकर वहां उनका अंतिम संस्कार कर देते हैं। पारसी धर्म के लोगों की अंतिम संस्कार करने की जो परम्परा होती है उसी को दोखमेनाशिनी परंपरा के नाम से जाना जाता है। इस धर्म में जब भी किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो मृतक के परिजन मृत शरीर को टावर ऑफ साइलेंस नाम के स्थान पर ले जाकर छोड़ देते हैं। यह काफी ऊंचा स्थान होता है।

इस ऊंचे स्थान को ‘दखमा’ भी कहा जाता है। यहां पर शव को इसलिए रखा जाता है क्योंकि पारसी धर्म के लोग शव को बहुत ही ज्यादा पवित्र मानते हैं।  फिर यहां पर गिद्ध, चील कौवे आदि शव को भोजन के रूप में खा लेते हैं। इसी पूरी परंपरा को दोखमेनाशिनी कहा जाता है। पारसी धर्म के लोग इस परंपरा को 3 हज़ार साल से निभाते चले आ रहे हैं। इस धर्म को मानने वाले लोग अग्नि, जल और भूमि को अत्यधिक पवित्र मानते हैं। यही कारण है कि वो किसी भी शव को दफनाते है फिर जलाते नहीं हैं। इस धर्म में किसी को जलाने का मतलब है अग्नि को अपवित्र करना तथा किसी को दफनाने का मतलब होता है पृथ्वी को अपवित्र करना। वहीं कब अस्थियों को गंगा में प्रवाहित किया जाता है तो इससे जल को अपवित्र माना जाता है। पारसी धर्म के अनुसार मरने के बाद शव को गिद्धों

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