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मोक्ष के बारे में तो हम सभी जानते हैं। इसका मतलब होता है दुनिया से मुक्त हो जाना। दुनिया से मुक्त होना भी आसान नहीं होता है। जिसने अपने जीवन में अच्छे कर्म किये होते हैं, उसे प्राण त्यागने में ज्यादा दिक्कत नहीं होती है और उसके प्राण आसानी से निकल जाते हैं। लेकिन जिस व्यक्ति ने ज़िंदा रहते अच्छे कर्म नहीं किये होते हैं, उसके प्राण आसानी से नहीं निकल पाते हैं और प्राण निकलते समय उसे बहुत दर्द को महसूस करना होता है।

इसके अलावा जब व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, उसके बाद उसे पूरे विधि विधान के साथ दुनिया से विदा किया जाता है। जिस तरह से जन्म होने पर बच्चे का स्वागत विधि विधान से किया और छठी वगेरह मनाई जाती है। वैसे ही मृत्यु होने पर तेरहवीं वगेरह मनाई जाती है। इसी के साथ हिंदू धर्म में अस्थियों को विसर्जन करने की भी मान्यता है। लेकिन इन अस्थियों का विसर्जन कब किया जाना चाहिए इसके बारे में काफी कम लोग जानते हैं। चलिए आज हम सबको इसकी बारे में बताते हैं कि अस्थियों का विसर्जन कब किया जाना चाहिए।

● अस्थियां क्या होती हैं?

जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है उसके बाद भी उसकी जो आत्मा होती है, वो यहीं धरती पर ही रहती है। वो हमेशा उसी स्थान के आसपास घूमती रहती है जहां पर व्यक्ति रहता था। आत्मा कोशिश करती है कि वो अपने शरीर में वापस जा सके क्योंकि आत्मा को अपने शरीर से बहुत अधिक मोह होता है। वो अपने शरीर को छोड़कर जाना ही नहीं चाहती है। आत्मा कुल 13 दिनों तक यही मंडराती रहती है। यही कारण है कि 13 दिनों तक आत्मा की मुक्ति के लिए भोज और श्राद्ध आदि कार्यक्रम किये जाते हैं।

जब मृत शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है तो उसके बाद उसके देह के जो अंग होते हैं, उसमें से केवल उसके हड्डियों के अवशेष ही रह जाते हैं। ये जो अवशेष होते हैं ये भी लगभग जल चुके होते हैं। इन्हीं को अस्थियों के रूप में जाना जाता है। माना जाता है कि जो अस्थियां होती हैं उसी में आत्मा का भी वास होता है। जो मृत शरीर होता है, उसका प्रतीकात्मक रूप ही अस्थियां होती हैं। व्यक्ति के मर जाने के बाद उसके दैहिक प्रमाण के रूप में उसकी अस्थियों का ही संचय किया जाता है।

● 10 दिनों तक अस्थियों को संभालकर रखा जाता है;-

जब व्यक्ति का शरीर पूरी तरह से जल जाता है उसके बाद ही अस्थियों को लिया जाता है। मृत शरीर में कई तरह के रोगाणु और जीवाणु पैदा हो जाते हैं और इनके फैलने का खतरा बना रहता है, जिससे बीमारियां हो सकती है। इसीलिए जब व्यक्ति को जला दिया जाता है तो ये सारे जीवाणु और रोगाणु मर जाते हैं और जो बची हुई हड्डियां होती है वो एकदम सुरक्षित और स्वच्छ होती हैं। फिर इन्हीं अस्थियों को घर पर लाया जाता है। इन्हें छूने पर किसी भी प्रकार का कोई डर नहीं होता है। फिर इन अस्थियों का भी श्राद्ध कर्म कर दिया जाता है और इन्हें फिर पवित्र नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। जो लोग गंगा किनारे बसे हुए रहते हैं, उन लोगों को उसी दिन अस्थियों का विसर्जन कर देना चाहिए। जो लोग नदी किनारे नहीं बसे हैं वो लोग उस अस्थि कलश को घर के बाहर किसी पेड़ पर लटका दें। लेकिन हां ये बात ध्यान रखें कि 10 दिनों के भीतर ही उन अस्थियों का विसर्जन कर देना चाहिए। जब 10 दिनों के भीतर ही अस्थियों का विसर्जन गंगा जी में कर दिया है जाता है तो ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति को गंगा घाट पर मरने का सुख प्राप्त हुआ है।

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