मृत्यु सार्वभौमिक सत्य है। इस दुनिया में कोई भी चीज अजर या अमर नहीं है। कोई भी जीव हो, जिसने इस दुनिया में जन्म लिया है, उसकी मृत्यु निश्चित है। यहां तक कि इस दुनिया की किसी भी वस्तु को भी एक न एक दिन नष्ट होना ही है। जीवन व मरण इस दुनिया का अभिन्न हिस्सा है। जैसा कि आप सभी जानते हैं इस पूरी दुनिया में अलग-अलग धर्म एवं समुदाय के लोग रहते हैं। अलग-अलग धर्म एवं समुदाय में जन्म मृत्यु से जुड़े अलग-अलग नियम एवं परंपराएं होती हैं जिनका पालन करना हर मनुष्य का परम कर्तव्य होता है।
जब मनुष्य की मृत्यु होती है, तो उसे जीवन मरण के बंधन से मुक्ति दिलाने के लिए, अलग-अलग धर्मों में अलग-अलग रीति-रिवाजों का पालन करते हुए उसका अंतिम संस्कार किया जाता है। आइए जानते हैं यहूदी धर्म में मृत्यु के पश्चात अंतिम संस्कार के लिए कौन से रीति रिवाज अपनाए जाते हैं।
किसी धर्म में मृत्यु के पश्चात शरीर को जलाने की परंपरा है, तो किसी में दफनाने की। कोई मृत्यु के पश्चात मृत शरीर को चील कौवो को खाने के लिए छोड़ देता है, वही किसी धर्म में मृत शरीर को सूली पर चढ़ाकर स्वतः ही नष्ट होने के लिए छोड़ दिया जाता है।
यहूदियों ने शुरू की मृत शरीर को दफनाने की परंपरा –
ऐसी मान्यता है कि मृत शरीर को दफनाने की परंपरा की शुरुआत यहूदियों द्वारा ही की गई थी। दरअसल दुनिया में सबसे ज्यादा यहूदी इजराइल या पश्चिमी देशों में ही पाए जाते हैं। इन देशों में प्रायः शीत जलवायु होती है, जिसकी वजह से लकड़ी में आग लगाने में कठिनाई होती है, जिसकी वजह से यहूदियों ने शवों को दफनाने की प्रथा की शुरुआत की। धीरे-धीरे कई अन्य धर्मों ने भी इसका अनुसरण करते हुए शवों को दफनाने की प्रथा की शुरुआत की।
यहूदी धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो यह प्रयास किया जाता है कि, जितनी जल्दी हो सके मृत शरीर को दफना दिया जाए और स्वाभाविक रूप से विघटित होने के लिए छोड़ दिया जाए। दफनाने की प्रक्रिया से पहले मृतक को नए कपड़े पहनाने का प्रावधान है।
मृत्यु के पश्चात एक सप्ताह के मातम की अवधि –
यहूदी धर्म में जब किसी मनुष्य की मृत्यु होती है, तो उसके अंत्येष्टि संस्कार के पश्चात 1 सप्ताह के दुख या मातम की अवधि चलती है, जिसे शिवा के नाम से जाना जाता है। इस मातम की अवधि में मृतक के सात प्रथम श्रेणी के रिश्तेदार अर्थात माता-पिता, पुत्र-पुत्री, भाई-बहन तथा जीवन साथी सम्मिलित होते हैं। इस अवधि के दौरान इन प्रथम श्रेणी के रिश्तेदारों को पारंपरिक रूप से एक घर में एकत्रित होकर आगंतुकों से मिलना होता है। अंत्येष्टि के समय मातम में सम्मिलित होने वाले प्रथम श्रेणी के रिश्तेदारों को केरियाह की प्रक्रिया करनी होती है। इस प्रक्रिया के दौरान अपने बाहरी परिधान को फाड़ देना होता है, और इस फटे हुए परिधान को शिवा के अंत तक यानी पूरे एक सप्ताह तक पहनना होता है। शिवा के दिन की गणना अंत्येष्टि संस्कार के दिन से शुरू की जाती है, जो सात दिनों तक चलती है।
शिवा के दौरान पालन किए जाते हैं ये नियम –
यहूदी धर्म में शिवा के दौरान मातम करने वाले लोगों के संबंध में कुछ नियम है जिनका पालन करना अनिवार्य है –
- शिवा के दौरान मातम करने वाला व्यक्ति घर से बाहर नहीं निकल सकता है।
- मातम करने वाला व्यक्ति कोई भी ऐसा कार्य नहीं कर सकता है जिसमे उसे आनंद मिले। यहां तक की इस दौरान स्नान भी वर्जित है। हालांकि शरीर की स्वच्छता के लिए मातम करने वाला व्यक्ति अपने अंग को धो सकता है, परंतु इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है, कि इसमें कोई भी आनंद ना मिले।
- मातम करने वाले व्यक्ति नए अथवा धुले हुए कपड़े नहीं पहन सकते हैं।
- मातम में शामिल व्यक्ति काम अथवा व्यापार नहीं कर सकता है।
- मातम करने वाले व्यक्ति खुद भोजन तैयार नहीं कर सकते हैं हालांकि दूसरे लोग भोजन तैयार करके उन्हें दे सकते हैं।
इस तरह से यहूदी धर्म में मृत्यु के पश्चात अंतिम संस्कार के बाद पूरे 1 सप्ताह तक विधि विधान से, मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए रीति रिवाज पूरे किए जाते हैं।