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हर एक जीव जिसने इस धरती पर जन्म लिया है, उसे एक न एक दिन इस धरती को छोड़कर जाना ही है, फिर चाहे वो इंसान हो या फिर जानवर या कोई पेड़ पौधा। हर किसी को एक न एक दिन मिट्टी में मिल जाना है। कई बार हम सभी के मन में ये सवाल आ जाता है कि आखिर मृत्यु हो जाने के बाद होता क्या है? इस सवाल का सही जवाब तो किसी को पता नहीं है। लेकिन मृत्यु के बाद हर धर्म में आत्मा की मोक्ष प्राप्ति के लिए मृत शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि अगर अंतिम संस्कार ठीक ढंग से न किया जाए तो आत्मा भटकती रहती है और मुक्त होकर नया शरीर नहीं खोज पाती है।

अगर बात करें हिंदू धर्म की तो हिंदू धर्म में मृत शरीर का अंतिम संस्कार बहुत ही विधि विधान के साथ किया जाता है। हिंदू धर्म में मृत शरीर को जलाया जाता है। ऐसा करने के पीछे एक विशेष कारण है। ऐसा माना जाता है कि मृतक ने इस जीवन में जो भी नकारात्मक कार्य किये हैं, उससे मुक्ति दिलाने के लिए और उसके जो भी बंधन हैं, उनसे मुक्त कराने के लिए उसकी चिता को अग्नि प्रदान की जाती है। इससे उसका पुनर्जन्म हो पाता है और वो अपना नया जीवन शांति से व्यतीत कर पाता है। यही नहीं हिंदू धर्म में तो यह भी मान्यता है कि मृत शरीर का अंतिम संस्कार सूर्यास्त से पहले ही हो जाना चाहिए। अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में सबसे पहला जो कार्य होता है वो शुद्धिकरण का होता है। इसको मुक्ति के नाम से भी जाना जाता है। फिर पार्थिव शरीर को धरती यानी ब्रह्मा पर रखा जाता है और उसे अग्नि यानी शिव को समर्पित किया जाता है। अंत में उसके शरीर की जो राख बच जाती है उसे अस्थियों के तौर पर जल यानी विष्णु में प्रवाहित कर दिया जाता है।

 वहीं अगर हिंदू धर्म में किसी बच्चे या फिर साधु संत की मृत्यु हो जाती है, तो उन्हें जलाया नहीं जाता है बल्कि उन्हें दफना दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि 5 साल से छोटे बच्चों की आत्मा एकदम पवित्र होती है और इन्होंने कोई भी पाप नहीं किये होते हैं। इसीलिए उन्हें शुद्धिकरण की कोई आवश्यकता नहीं होती है और वो पूरी तरह से शुद्ध होते हैं। ऐसा तो हिंदू धर्म में होता है, लेकिन अलग अलग धर्मों में अंतिम संस्कार की जो प्रक्रिया है वो अलग अलग है। क्या आपको पता है कि बौद्ध धर्म में अंतिम संस्कार की क्या प्रक्रिया है? आज हम इसी के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। हम आप सभी को बताने जा रहे हैं कि बौद्ध धर्म में अंतिम संस्कार कैसे किया जाता है।

बौद्ध धर्म के बारे में जानकारी;-

ये धर्म भारत की श्रमण परंपरा से निकला हुआ धर्म है। इसके जो संस्थापक थे वो महात्मा बुद्ध शाक्यमुनि थे। इन्हें गौतम बुद्ध के नाम से भी जाना जाता है। उन्हें एशिया की ज्योति पुंज कहा जाता है। बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया था और इन्होंने अपने सबसे ज्यादा उपदेश कौशल देश की राजधानी श्रावस्ती में दिए थे। इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था और जब इन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ, उसके बाद इन्हें बुद्ध के नाम से जाना जाने लगा। जिस जगह इन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था, उस जगह को बोधगया के नाम से जाना जाता है। गौतम बुद्ध 563 ईसा पूर्व से 583 ईसा पूर्व तक रहे थे। इन धर्म की जन्म ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म से भी पहले हो गया था। इन दोनों धर्मों के बाद ही यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। इस धर्म को जो लोग मानते हैं, वो ज्यादातर चीन, जापान, नेपाल, श्रीलंका, कोरिया, थाईलैंड, कंबोडिया, भूटान और भारत देश में रहते हैं।

बौद्ध धर्म में कैसे होता है अंतिम संस्कार?

बौद्ध धर्म में मृत शरीर को जलाया भी जा सकता है और दफनाया भी जा सकता है। इस धर्म में दोनों ही परंपरा को मान्यता प्रदान की गई है। इसमें अंतिम संस्कार की जो परंपरा है वो स्थानीय संस्कृति में चले आ रहे रीति रिवाजों पर निर्भर करती है। जब शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है, उस समय परिवार के या फिर भिक्षु के सदस्य प्रार्थना करते हैं। इसके बाद अगले दिन संस्कारित अवशेषों को परिवार के द्वारा इकट्ठा किया जाता है। इसको परिवार चाहे तो अपने पास रख सकता है अन्यथा इसको किसी अस्थिशेष रखने के समर्पित भवन में रख दिया जाता है। कई लोग तो इसको समुद्र में विसर्जित भी कर देते हैं। वहीं दूसरी तरफ जो लोग अभी भी शरीर को दफनाते है, वो लोग सबसे पहले पार्थिव शरीर को ताबूत में रखते हैं और उसके बाद प्रार्थना करते हैं। इसके बाद फिर शरीर को दफना दिया जाता है।

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