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मृत्यु-के-बाद2-terhvi

भारत को ‘विविधता में एकता’ का देश कहा जाता है। इसको यह नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि यहां पर अलग अलग धर्म के लोग रहते हैं और अलग अलग धर्म से होने के बाद भी लोग यहां एकता से एक साथ मिलकर रहते हैं। हालांकि हर धर्म के नियम कानून अलग अलग हैं। जन्म आए लेकर मृत्यु तक हर धर्म में अलग अलग विधियों का पालन किया जाता है। किसी धर्म में मृत्यु हो जाने पर मृत शरीर को मिट्टी में दफनाने की परंपरा है तो किसी धर्म में मृत शरीर को जलाने की परंपरा है।

आज हम हिंदू धर्म की बात करेंगे। हिंदू धर्म में व्यक्ति के अंतिम संस्कार करने की जो प्रक्रिया है वो बाकी धर्मों से काफी अलग है। साथ ही यहां अगर किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसकी आत्मा की शांति के लिए तेरह दिनों तक अलग अलग की रीति रिवाजों का पालन करके क्रिया की जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति मिल सके। इसके बाद तेरह दिन पर भोज का आयोजन किया जाता है। इसी को तेरहवीं के रूप में जाना जाता है। तेरहवीं की जो प्रक्रिया है उसके बारे में ज्यादातर लोगों को जानकारी नहीं है। इसीलिए आज हम आप सभी को बताने जा रहे हैं कि तेरहवीं संस्कार को कैसे किया जाता है।

● तेरह दिनों तक आत्मा रहती है अपने परिजनों के साथ;-

पुराणों में भी मृत्यु के बारे में बताया गया है। गरुण पुराण में तो मृत्यु के बारे में संक्षिप्त रूप में बताया गया है। गरुण पुराण के अनुसार जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसके बाद उसकी जो आत्मा होती है उसको लेने के लिए 2 यमदूतों को भेजा जाता है। मरने की वो स्तिथि ऐसी होती है जिसका वर्णन करना मुमकिन ही नहीं है। जब व्यक्ति का वक़्त निकट आ जाता है तो उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा जाता है और उसे यमदूत नज़र आने लगते हैं। वही यमदूत मृत शरीर की आत्मा को अपने साथ ले जाने लगते हैं। व्यक्ति ने अपने जीवन में जो जो कर्म किये होते हैं, वो एक वीडियो क्लिप की तरह उसकी आँखों के सामने चलने लगते हैं। उसके अच्छे बुरे सारे कर्म उसे एक पल के भीतर ही याद आने लगते हैं। कर्म के अनुसार ही ये पता चलता है कि व्यक्ति को स्वर्ग लोक मिलेगा या फिर व्यक्ति को नर्क लोक में भेजा जाएगा। फिर जब आत्मा को यमदूत ले जाने लगते हैं तो आत्मा अपने परिजनों को छोड़कर जाना नहीं चाहती है। आत्मा चाहती है कि वो अपने परिजनों के साथ ही रहे। इसीलिए उसे वापस धरती पर भेज दिया जाता है। चूंकि आत्मा का शरीर को नष्ट कर दिया जाता है इसीलिए आत्मा अपने परिजनों के आसपास भटकती रहती है। वो अपने शरीर को पाने की कोशिश भी करती है लेकिन सफल नहीं होती है। इसके बाद तेरह दिनों तक आत्मा धरती पर ही अपने परिजनों के पास भटकती रहती है।

● 24 घण्टों तक आत्मा रहती है यमलोक में;-

व्यक्ति ने अपने जीवन काल में जो जो किया होता है वो सब उसे मरते समय याद आ जाता है। यमदूत जब आत्मा को यमलोक ले जाते हैं तो वो आत्मा को उसके कर्मों को प्रदर्शित करते हैं। इसी दौरान आत्मा को 24 घण्टों के लिए यमलोक में ही रखा जाता है। इसके बाद यमदूत वापस आत्मा को परिजनों के पास ही छोड़ आते हैं। फिर आत्मा परिजनों के पास भी भटकती रहती है क्योंकि उसमें मृत्यु लोक तक के सफर को तय करने की शक्ति नहीं होती है।

● पिंडदान करने से मिलती है आत्मा को शक्ति;-

अंतिम संस्कार करने के बाद मृत व्यक्ति के परिजन नियमित रूप से पिंडदान करते हैं। परिजनों के द्वारा किये जाने वाले पिंडदान से ही आत्मा के अलग अलग अंगों की बनावट हो पाती है। फिर जो परिजनों के द्वारा 11वें व 12वें दिन का पिंडदान होता है उससे आत्मा के मांस और त्वचा का निर्माण हो पाता है। फिर 13वें दिन जब पिंडदान किया जाता है तो उससे आत्मा को शक्ति मिल जाती है और आत्मा मृत्युलोक तक के सफर को तय करने के लिए तैयार हो जाती है। तेरहवीं दिन का जब पिंडदान हो जाता है उसकी बाद तेरहवीं की जाती है और भोज का आयोजन किया जाता है। जो पिंडदान किया जाता है उसी से आत्मा को शक्ति मिलती है। पिंडदान की वजह से आत्मा एक व्यक्ति के तौर पर निर्मित हो पाती है और खुद चलकर यमलोक जाने में सक्षम हो पाती है।

● मृत्यलोक से यमलोक तक पहुंचने में लगता है एक साल का समय;-

जो 13 दिनों तक परिजनों के द्वारा पिंडदान किया जाता है उससे आत्मा को बल मिलता है। वो पिंडदान आत्मा के लिए भोजन के तौर पर काम करता है। वो एक साल तक आत्मा को भोजन के तौर पर प्राप्त होता रहता है। इसी एक साल के अंदर आत्मा मृत्यलोक से यमलोक के लिए रवाना हो जाती है। ऐसा माना जाता है कि तेरहवीं के दिन तेरह ब्राह्मणों को भोजन अवश्य कराना चाहिए, ऐसा करने से जो आत्मा होती है उसे प्रेत योनि से मुक्ति प्राप्त होती है। साथ ही वो अपने परिजनों को कभी परेशान नहीं करती है। इसके अलावा आत्मा के परिजनों को भी शोक से मुक्ति मिल जाती है।

वहीं जिस आत्मा के परिजन उसका 13 दिनों तक पिंडदान नहीं करते हैं उसके साथ यमदूत अच्छा बर्ताव नहीं करते हैं। ऐसी आत्मा को घसीटते हुए और ज़बरदस्ती यमलोक तक ले जाया जाता है। आत्मा को यमलोक तक का सफर तय करने के लिए बहुत तरह के कष्टों को सहना पड़ता है। इसीलिए तेरहवीं का विशेष महत्व समझा जाता है ताकि आत्मा को किसी भी कष्ट को झेलना न पड़े और वो बिना किसी कष्ट के यमलोक तक जा सके।

यहां पर कर्मों का भी विशेष महत्व होता है। इसीलिए कहा जाता है कि अच्छे कर्म ही करने चाहिए नहीं तो आत्मा को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसीलिए व्यक्ति के जीवित रहते उससे गौ दान करवाया जाता है। इसको सबके बड़ा दान माना जाता है और इससे बड़ा पुण्य का काम कोई और नहीं होता है। ऐसा करने से व्यक्ति सारे पापों से मुक्त हो जाता है और जब व्यक्ति के प्राण निकलते हैं तो उसके बाद आत्मा को किसी भी तरह का कोई कष्ट नहीं सहना पड़ता है।

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