A Venture by Ferns N Petals

गया-में-पिंडदान-व-श्राद्ध

बिहार राज्य में स्थित शहर ‘गया’ को विष्णु नगर के नाम से भी जाना जाता है। इस नगर की चर्चा विष्णु पुराण और वायु पुराण में हुई हुई है। मोक्ष की भूमि के नाम से जाने वाला यह शहर ‘पितृ तीर्थ स्थल’ भी कहलाता है। पुराणों के अनुसार गया में किया गया पिंडदान व श्राद्ध पितरों को मोक्ष दिलाता है।

क्या है गया में किए गए श्राद्ध की पौराणिक मान्यता –

पौराणिक कथाओं के अनुसार भस्मासुर राक्षस के वंश में गयासुर नाम का एक राक्षस था। उसने कई वर्षों तक ब्रह्मा जी की कठिन तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उससे वरदान मांगने को कहा। वरदान स्वरूप उसने ब्रह्मा जी से अपने शरीर को देवताओं की भांति पवित्र होने की मांग की, जिसके दर्शन मात्र से लोगों का पाप खत्म हो जाए। ब्रह्मा जी से यह वरदान मिलने के बाद लोग भयमुक्त होकर पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन से पाप मुक्त होकर स्वर्ग पहुंचने लगे। इस तरह प्राकृतिक नियमों के विपरीत स्वर्ग की जनसंख्या लगातार बढ़ने लगी। तब देवताओं ने एक पवित्र यज्ञ स्थल के लिए गयासुर से जगह मांगी। गयासुर ने यज्ञ के लिए अपना शरीर देवताओं को दे दिया। जब गयासुर जमीन पर लेटा तो उसका शरीर काफी दूर तक फैल गया। इसी जगह को गया के नाम से जाना जाता है। फाल्गु नदी के तट पर बसे हुए इस शहर में नदी के तट पर पिंडदान करने से पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है, और उन्हें जीवन मरण के बंधन से मुक्ति मिलती है।

गया में किए गए श्राद्ध का महत्व –

गया शहर को मोक्ष की भूमि के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार गया में किए गए पिंडदान से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। उन्हें जीवन मरण के बंधन से मुक्ति मिलती है तथा स्वर्ग की प्राप्ति होती है। पितृपक्ष के दौरान फल्गु नदी के तट पर 17 दिन का पितृपक्ष मेला लगता है। नदी के तट पर स्थित विष्णुपद मंदिर व अक्षय वट के पास प्रतिवर्ष पितृपक्ष के दौरान लाखों संख्या में लोग अपने पितरों का श्राद्ध करने के लिए पहुंचते हैं। ‘पितृ तीर्थ’ व ‘मोक्ष स्थली’ के रूप में जाने जानें वाले इस पवित्र स्थल पर किया गया श्राद्ध पूर्वजों को मोक्ष दिलाने में सहायक होता है।

कैसे करें गया में पिंडदान –

हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि आत्मा अजर और अमर होती है। ऐसे में मृत्यु के बाद मनुष्य का शरीर तो नष्ट हो जाता है, जबकि आत्मा दर-बदर भटकती रहती है। भटकती हुई आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध एवं पिंडदान की क्रियाएं की जाती है। पिंडदान की क्रिया कैसे की जाती है इससे पहले जानते हैं इसके लिए आवश्यक सामग्री के बारे में –

पिंडदान में उपयोग होने वाली आवश्यक सामग्री;-

पितृ पक्ष के दौरान गया में पिंडदान करने से पितर तृप्त होते हैं और इसी के साथ ही वो घर में अच्छी संतान के होने का आशीर्वाद भी प्रदान करते हैं। इसीलिए श्राद्ध करना बहुत ज्यादा जरूरी होता है। जो लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध और पिंडदान नहीं करते हैं उनकी पितरों की आत्मा कभी तृप्त नहीं होती है। उनकी आत्मा अतृप्त ही रहती है।  श्राद्ध में तर्पण करने के लिए तिल, जल, चावल, कुशा, गंगाजल आदि का उपयोग अवश्य ही किया जाना चाहिए। उड़द, सफेद पुष्प, केले, गाय के दूध, घी, खीर, स्वांक के चावल, जौ, मूंग, गन्ने आदि का इस्तेमाल करते हैं श्राद्ध में तो पितर प्रशन्न होते हैं और घर में सुख शांति बनी रहती है।

पिंडदान करते समय रखें इन बातों का विशेष ध्यान-

◆ जब भी मृत व्यक्ति के घरवाले मृतक का पिंडदान करें तो सबसे पहले चावल या फिर जौ के आटे में दूध और तिल को मिलाकर उस आटे को गूथ लें। इसके बाद उसका गोला बना लें।

◆ जब भी आप तर्पण करने जाएं तो ध्यान रखें कि आप पीतल के बर्तन लें या फिर पीतल की थाली लें। उसमें एकदम स्वच्छ जल भरें। इसके बाद उसमें दूध व काला तिल डालकर अपने सामने रख लें। इसी के साथ अपने सामने आप एक और खाली बर्तन भी रखें।

◆ अब आप अपने दोनों हाथों को मिला लें। इसके बाद मृत व्यक्ति का नाम लेकर तृप्यन्ताम बोलते हुए अंजुली में भरे हुए जल को सामने रखे खाली बर्तन में डाल दें।

◆ जल से तर्पण करते समय आप उसमें जौ, कुशा, काला तिल और सफेद फूल अवश्य मिला लें। इससे मृत आत्मा को शांति मिलती है। ऐसा करने से पितर तृप्त हो जाते हैं। इसके बाद आप ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और उन्हें दान दक्षिणा दें।

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version