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रामेश्वर

जीवन और मृत्यु तो एक ही गाड़ी के दो पहिए हैं। जैसे जीवन के बाद मृत्यु होना तय होता है, वैसे ही मृत्यु के बाद भी कहीं न कहीं आत्मा को नया शरीर मिलता है। इसीलिए हिंदू धर्म में श्राद्ध एवं पिंडदान को विशेष मान्यता प्रदान की गई है। श्राद्ध कर्म इसलिए किया जाता है ताकि जो भी आत्मा मृत्युलोक तक नहीं पहुंच पाई हो, वो मृत्युलोक तक का सफर तय कर ले। भटकती हुई आत्मा को मुक्ति मिल जाए और वो नए शरीर में प्रवेश करने के लिए सक्षम हो जाए। साथ ही आत्मा को जीवन-मरण के बंधनों से मुक्त करने के लिए परिजनों के द्वारा अस्थि का विसर्जन किया जाता है।

इसके साथ ही हिंदू धर्म में कुछ स्थानों को पवित्र माना गया है और वहां पर अगर कर्मकांड किये जाते हैं तो ऐसा माना जाता है कि आत्मा को मृत्युलोक का सफर तय करने में परेशानी नहीं होती है। वहीं आत्मा को स्वर्ग लोक जाना है या नरक लोक ये मनुष्य के जीवित रहते हुए किए गए कर्मों पर निर्भर करता है। अगर जीवित रहते हुए मनुष्य अच्छे कर्म करता है तो उसे निःसन्देह स्वर्ग लोक में जगह दी जाती है। वहीं जिन लोगों ने जीवित रहते अच्छे कर्म नहीं किये होते हैं, उन्हें नरक में जगह दी जाती है। साथ ही उनके प्राण भी आसानी से नहीं निकलते हैं और व्यक्ति को प्राण निकलने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

हिंदू धर्म में जब किसी व्यक्ति का निधन होता है तो पूरे रीति रिवाज के साथ उसकी अंतिम विदाई की जाती है। अंतिम संस्कार के तौर पर व्यक्ति के मृत शरीर को आग में जला दिया जाता है। आग में जलने के बाद मृर शरीर के जो अवशेष बच जाते हैं उन्हीं को अस्थियों के रूप में जाना जाता है। फिर उस अस्थि को गंगा जी में प्रवाहित किया जाता है और ऐसा माना जाता है अस्थि विसर्जन के बाद ही आत्मा पूरी तरह से मुक्त हो पाती है। हिंदू धर्म में कुछ स्थानों को पवित्रतम माना गया है। अगर इन स्थानों पर अस्थि विसर्जन किया जाता है तो आत्मा को मृत्युलोक का सफर तय करने में परेशानी नहीं होती है। इन स्थानों में से एक स्थान रामेश्वरम भी है। रामेश्वरम भी धार्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण स्थान है। आइये जानते हैं कि रामेश्वरम में अस्थि विसर्जन का क्या महत्व है।

● रामेश्वरम में अस्थि विसर्जन:-

रामेश्वरम शहर तमिलनाडु राज्य में स्थित है। यह तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में बसा हुआ एक शहर है। धार्मिक दृष्टि से इस शहर को विशेष माना गया है। रामेश्वरम शहर को रामिसेरम के नाम से भी जाना जाता है। ये चार धामों में से एक धाम है। यहां पर मृत आत्माओं की अस्थियों को धनुष्कोडी के पास या फिर अग्नितीर्थम में प्रवाहित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यहां पर अस्थियों को विसर्जित करने से आत्मा को जीवन चक्र से मुक्ति मिल जाती और जीवन- मरण का सिलसिला यहीं पर समाप्त हो जाता है। रामेश्वरम में किया गया अस्थि विसर्जन बहुत ही महत्वपूर्ण धार्मिक समारोह माना गया है। ऐसे में जो विदेश में रह रहे लोग हैं या रामेश्वरम से काफी दूरी पर स्थित हैं, उनके लिए रामेश्वरम में अपने प्रियजनों के अस्थि विसर्जन करना थोड़ा सा मुश्किल हो सकता है। लेकिन अगर हम ऐसे लोगों से ये कहें अब कुछ भी मुश्किल नहीं है तो? अब हमारी Last journey की टीम मुश्किल परिस्थिति में सबके साथ खड़ी है और रामेश्वरम में अस्थि विसर्जन कराने की आप सबकी जिम्मेदारी उठाने के लिए एकदम तैयार है। Last journey व्यक्तियों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों ही रूप में विद्वान पंडितों की उपस्थिति में रामेश्वरम में अस्थि विसर्जन करने का विकल्प प्रदान करती है। ऐसे में उस मुश्किल परिस्थिति में Last journey की टीम हमेशा साथ है।

● अस्थि विसर्जन कब करना चाहिए?

हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि अस्थि विसर्जन पूरे रीति रिवाज के साथ ही सम्पन्न किया जाना चाहिए। अगर अस्थि विसर्जन शास्त्रों में बताए गए निर्देशों के अनुसार नहीं किया जाता है तो आत्मा को बहुत कष्टों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में ये आवश्यक है कि अस्थि विसर्जन को पूरे नियमों का पालन करते हुए ही करना चाहिए। जब भी मृत शरीर को अग्नि प्रदान कर दी जाए, उसके बाद किसी भी दिन, दूसरे, तीसरे, सातवें दिन भी मृत शरीर के अवशेषों को एकत्र किया जा सकता है। एकत्र किए गए अवशेषों को दसवें दिन से पहले ही जल में प्रवाहित कर देना चाहिए। वहीं शास्त्रों में ऐसा माना गया है कि अस्थियों को अग्नि प्रदान करने के तीसरे दिन बाद अवशेषों को एकत्र कर लेना चाहिए। अवशेषों को एकत्र करने का सबसे उत्तम समय यही है।

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