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पितृ दोष

श्राद्ध पक्ष में पितरों को श्राद्ध दिया जाता है। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष के समय पितरों की सच्ची श्रद्धा के साथ तर्पण किया जाता है। श्राद्ध पक्ष में हिंदू धर्म में लगभग हर घर में पितरों या पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है। इसकी विशेष मान्यता है। हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि अगर पितरों का श्राद्ध ठीक प्रकार से पूरे रीति रिवाज से सम्पन्न किया जाता है तो उनका आशीर्वाद आगे आने वाली पीढ़ी पर बना रहता है एवं घर परिवार में किसी भी प्रकार की कोई समस्या नहीं होती है।

तर्पण या श्राद्ध करने से पितर खुश होते हैं एवं खुश होकर संतान सुख एवं समृद्धि का आशीर्वाद भी प्रदान करते हैं। यही कारण है कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसका अंतिम संस्कार पूरे रीति रिवाज के साथ किया जाना बहुत आवश्यक होता है अन्यथा मृत आत्मा नाराज हो जाती है एवं अपने आसपास के लोगों को परेशान करती है। इसी के साथ कई बार विधि विधान से अंतिम संस्कार न किये जाने की वजह से आगे आने वाली पीढ़ियों की कुंडली में पितृ दोष का संकट बना रहता है।

किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु का हो जाना, किसी मृत व्यक्ति का रीति रिवाज के साथ अंतिम संस्कार का न किया जाना, ये सब कुंडली में पितृ दोष के रूप में परेशानी पैदा करते हैं। इससे बचने के लिए व्यक्ति को कुछ उपाय करने होते हैं जिसके बाद ही कुंडली में निहित पितृ दोष से व्यक्ति मुक्त हो पाता है।

कुंडली में पितृ दोष लगने के बहुत से कारण हो सकते हैं। अकाल मृत्यु या श्राद्ध न किया जाना आदि। आज इस लेख में हम आप सबको पितृ दोष के बार में ही जानकारी देने जा रहे हैं। इसमें हम आप सबको बताएंगे कि मनुष्य की किन गलतियों की वजह से मनुष्य की कुंडली में पितृ दोष लगता है। साथ ही हम ये भी जानकारी देंगे कि पितृ दोष के प्रकार क्या- क्या हैं।

● पितृ दोष क्या होता है?

पितृ दोष दो शब्दों से मिलकर बना है, पितृ एवं दोष, तो सबसे पहले हम इन शब्दों का मतलब जान लेते हैं। अगर पितृ की बात करें तो पितृ का शाब्दिक अर्थ ‘पूर्वज’ होता है। वहीं दोष का अर्थ दोष ही होता है। ऐसे में अगर इन दो शब्दों को मिला दिया जाए तो ये सामने आएगा कि इस शब्द का संबंध कहीं न कहीं पूर्वजों से है। आमतौर पर पितृ दोष को पितरों या पूर्वजों के श्राप के रूप में जाना जाता है। अब श्राप से मतलब यह नहीं है कि किसी व्यक्ति के पूर्वजों ने उसको शापित किया है, बल्कि इसका मतलब यह है कि व्यक्ति के पूर्वज खुद अपने कर्मों की वजह से श्राप को झेल रहे हैं।

पूर्वजों के इस श्राप का हिस्सा या ऋण आगे आने वाली पीढ़ियों के पास चला जाता है। बाद में यही पितृ दोष के रूप में मनुष्य की कुंडली में आ जाता है और फिर लोगों को परेशान करता है। पितृ दोष कुंडली में रहने से अक्सर बनते काम बिगड़ने लगते हैं। यह मनुष्य के हाथ में नहीं होता है, ये तो पारिवारिक रेखा के कर्म ऋण का एक भाग होता है जो मनुष्यों को उनके पूर्वजों के कारण प्राप्त होता है।

पितृ दोष मनुष्य की कुंडली में तब लगता है जब परिवार में किसी की अकाल मृत्यु हो जाती है या किसी का अंतिम संस्कार विधि विधान से नहीं किया जाता है। इसी के साथ जब कोई मनुष्य पिता की हत्या कर देता है, या पिता को अपमानित करता है या बड़े बुजुर्गों का सम्मान नहीं करता है तो ऐसे मनुष्यों की कुंडली में भी पितृ दोष विद्यमान रहता है। ऐसा भी कहा जाता है कि जिन जातकों की कुंडली में पितृ दोष रहता है, उनसे उनके पूर्वज दुखी रहते हैं।

● पितृ दोष के लक्षण क्या होते हैं?

अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में पितृ दोष निहित है तो वो निम्न लक्षणों की मदद से ये पता कर सकते हैं-

◆ अक्सर जब पितृ दोष रहता है तो घर में कोई न कोई सदस्य अवश्य ही अस्वस्थ रहता है। बार- बार इलाज करवाने के बाद भी बीमारी ठीक नहीं होती है।

◆ पितृ दोष की वजह से नौकरी और व्यवसाय में कभी भी सफलता हासिल नहीं होती है और हमेशा हानि ही होती है।

◆ इसकी वजह से संतान सुख नहीं प्राप्त होता है। कई बार तो लोगों को संतान प्राप्त हो भी जाती है लेकिन संतान में कोई न कोई कमी रह जाती है या तो संतान मानसिक रूप से कमज़ोर रहता है या फिर विकलांग पैदा होता है।

◆ पितृ दोष की वजह से परिवार में एकता नहीं रहती है और घर में क्लेश बना रहता है।

◆ कुंडली में अगर पितृ दोष रहता है तो घर में विवाहित जीवन भी सुखमय नहीं रहता है। कुंवारे लोगों की शादी में दिक्कत आती है और अक्सर तलाक आदि की समस्या आती है।

◆ परिवार के सदस्यों पर भूत प्रेत आदि का प्रभाव बना रहता है। जिसकी वजह से घर में तनाव और अशांति बनी रहती है।

◆ पितृ दोष के होने से कोई भी कार्य सफलतापूर्वक नहीं हो पाता है एवं घर के सदस्यों को बार- बार दुर्घटना आदि का शिकार होना पड़ता है।

● कुंडली में पितृ दोष है या नहीं ये कैसे जानें?

कुंडली में पितृ दोष है या नहीं इसका पता दो ग्रहों की वजह से चलता है। सूर्य व मंगल ग्रह के पीड़ित होने से कुंडली में पितृ दोष होता है। इन दो ग्रहों से संबंध इसलिए होता है क्योंकि सूर्य ग्रह पिता से संबंधित होता है एवं मंगल ग्रह रक्त से संबंध रखता है। वहीं दूसरी ओर सूर्य के पाप ग्रह के रूप में राहु केतु एवं शनि को माना गया है। इसीलिए जब इन ग्रहों के साथ सूर्य की दृष्टि या युति संबंध होता है तो सूर्यकृत पितृ दोष का निर्माण हो जाता है। इसी के साथ ही जब मंगल राहु या केतु के साथ या इनसे दृष्ट होता है तो मंगलकृत पितृ दोष का निर्माण होता है।

● पितृ दोष कितने प्रकार के होते हैं?

पितृ दोष आमतौर पर दो प्रकार के होते हैं। सूर्य और मंगल ग्रह की वजह से पितृ दोष कुंडली में विद्यमान रहता है। इन्हीं दो ग्रहों की वजह से कुंडली में दो प्रकार के पितृ दोष पाए जाते हैं।

◆ सूर्यकृत पितृ दोष- जिन जातकों की कुंडली में सूर्यकृत पितृ दोष विद्यमान रहता है उनके विचार परिवार के बड़े सदस्यों से मेल नहीं खाते हैं और क्लेश बना रहता है।

◆ मंगलकृत पितृ दोष- जिन जातकों की कुंडली में मंगलकृत पितृ दोष विद्यमान रहता है उनके विचार घर परिवार के छोटे सदस्यों से नहीं मिलते हैं और घर मे अशांति बनी रहती है।

● किन वजहों से होता है पितृ दोष?

पितृ दोष के कुंडली में होने के लिए निम्न कारण होते हैं-

◆ अपने बड़े बुजुर्गों एवं पितरों का अपमान करना या उनकी विस्मृति करना।

◆ अपने पितरों का विधि विधान से श्राद्ध या अंतिम संस्कार न करना।

◆ नीम, पीपल या बरगद के पेड़ को काटना।

◆ नाग की किसी से हत्या करवाना या स्वयं हत्या करना।

◆ धर्म का सम्मान न करना एवं धर्म के विरुद्ध आचरण करना।

● पितृ दोष से मुक्त होने के लिए क्या करें?

पितृ दोष कुंडली में होने से कोई भी कार्य सफल नहीं हो पाता है। इसलिए इससे मुक्ति पाने के लिए निम्न उपायों को अपनाएं-

◆ पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए पूर्वजों की तस्वीर को दक्षिण दिशा में लगाएं एवं रोज फूल माला चढ़ाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। ऐसा करने से धीरे- धीरे पितृ दोष से मुक्ति मिल जाएगी।

◆ जिस दिन पितरों की मृत्यु हुई हो, उस दिन ब्राह्मणों को भोज कराएं एवं दान भी करें। ऐसा करने से पितर प्रशन्न होते हैं और दोष कम होने लगता है।

◆ पितृ दोष वाले जातक गरीब कन्या के विवाह करने या विवाह करने में मदद कर सकते हैं। ऐसा करने से भी पितृ दोष का प्रभाव कम हो जाता है।

◆ हर शाम दक्षिण दिशा में दीपक अवश्य जलाएं। रोज़ अगर संभव न हो तो श्राद्ध पक्ष में दक्षिण दिशा में दीपक अवश्य जलाएं। ऐसा करने से भी पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है।

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