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सिख-धर्म-में-अंतिम-संस्कार

हर इंसान जो इस धरती पर जन्म लेकर आया है, उसे एक न एक दिन इस संसार को छोड़कर जाना ही है। आज नहीं तो कल सबकी मृत्यु निश्चित है। कोई भी अमर होकर दुनिया में नहीं आता है। असल में अमर बस एक शब्द मात्र है। इसका कोई मतलब नहीं है क्योंकि आज तक कोई ऐसा इंसान नहीं हुआ है जिसकी मृत्यु न हुई हो और वो सदा धरती पर रह गया हो। अगर किसी का जन्म हुआ है तो उसकी मृत्यु होगी ही होगी।

जब मृत्यु होती है तो हर धर्म में अलग अलग रीति रिवाजों को अपनाया जाता है। किसी धर्म में मृत्यु हो जाने के बाद मृत शरीर को अग्नि दी जाती है और ऐसे अंतिम संस्कार किया जाता है, तो किसी धर्म में मृत शरीर को मिट्टी में दफना कर मृत शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है, वहीं किसी अन्य धर्म में मृत शरीर को ऐसे ही छोड़ दिया जाता है और उसे चील और कौवों का भोजन बना दिया जाता है। हर धर्म में अंतिम संस्कार को लेकर अलग अलग मान्यता है। ऐसा माना जाता भी जाता है कि जिस व्यक्ति का जन्म जिस धर्म में होता है, उसका अंतिम संस्कार भी उसी धर्म के अनुसार ही करना चाहिए। अंतिम संस्कार का हर धर्म में बहुत अधिक महत्व है। हर धर्म में ऐसा माना जाता है फिर चाहे धर्म हिंदू हो या मुस्लिम, या सिख हो या ईसाई, कि अंतिम संस्कार को पूरे विधि विधान से करना चाहिए। अगर विधि विधान से अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है तो आत्मा मुक्त नहीं होती है और भटकती रहती है। इसीलिए आत्मा की मुक्ति के लिए और घर की सुख शांति के लिए अंतिम संस्कार को धार्मिक रीति रिवाज के अनुसार किया जाना आवश्यक है।

जैसा कि अभी हमने बताया कि हर धर्म में अंतिम संस्कार को लेकर अलग अलग मान्यता है। ऐसे ही सिख धर्म में भी अंतिम संस्कार करने की अलग ही प्रक्रिया है। सिख धर्म में अंतिम संस्कार कैसे होता है, इसके बारे में जानकारी बहुत ही कम लोगों है। इसीलिए आज इस लेख में हम आप सबको बताएंगे कि सिख धर्म में अंतिम संस्कार कैसे किया जाता है।

सिख धर्म में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया;-

ऐसा माना जाता है कि जो सिख धर्म है उसकी स्थापना का समय वही है जो हिंदू धर्म की स्थापना का समय है। यानी हिंदू धर्म की स्थापना के साथ ही सिख धर्म की भी स्थापना हुई है। यही कारण है कि हिंदू और सिख धर्म की बहुत सारी मान्यताएं और रीति रिवाज आपस में मिलते हैं। अंतिम संस्कार भी दोनों ही धर्म में काफी हद तक एक ही प्रकार से किया जाता है। अगर बात करें हिंदू धर्म की तो हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि जब व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसके बाद उसके मृत शरीर को अग्नि प्रदान की जानी चाहिए। इससे जिन पांच तत्वों से मिलकर शरीर का निर्माण होता है, वो सभी तत्व उसी में मिल जाए और उसकी आत्मा को मुक्ति मिल जाए। मृतक की आत्मा को शांति अग्नि प्रदान करने से ही मिलती है, ऐसा हिंदू धर्म का मानना है। इसके अलावा ऐसा करने के पीछे एक और वजह यह भी है कि ऐसा करने से शरीर का अंत हो जाता है, इसीलिए अगर शरीर नहीं होगा तो परिजनों को व्यक्ति से ज्यादा मोह भी नहीं होगा, और जो मोह होगा वो भी धीरे धीरे खत्म हो जाएगा।

इसी तरह से सिख धर्म में भी हिंदू धर्म की तरह ही अंतिम संस्कार किया जाता है। सिख धर्म में भी मृत शरीर को अग्नि प्रदान की जाती है। सिख धर्म में मृत शरीर का अंतिम संस्कार करने से पहले मृतक को नहलाया जाता है, इसके बाद सिख धर्म में के जो पांच चिन्ह होते हैं उन्हें संवारा जाता है। सिख धर्म में इन पांच चिन्हों का बहुत अधिक महत्व है।

ये पांच चिन्ह,

  • कृपाण,
  • कंघा,
  • कटार,
  • कड़ा
  • केश

इन्हें संवारने के बाद शव को अर्थी पर ही श्मशान घाट तक उसके परिजन ले जाते हैं। जिस तरह से हिंदू धर्म में लोग राम नाम सत्य है कहते हुए अर्थी को श्मशान तक ले जाते हैं, उसी तरह से सिख धर्म में परिजन वाहेगुरु का नाम लेकर अर्थी को श्मशान तक ले जाते हैं। सिख धर्म में एक चीज़ हिंदू धर्म से अलग है, वो यह है कि सिख धर्म में महिलाएं भी श्मशान घाट जा सकती हैं, लेकिन हिंदू धर्म में इस पर पाबंदी लगाई गई है।

सिख धर्म में भी अंतिम संस्कार मृतक के किसी करीबी के द्वारा ही किया जाता है। फिर शाम को दाह संस्कार हो जाने के बाद भजन और अरदास किया जाता है। इसके बाद जब लोग श्मशान से वापस आते हैं तो वो नहाते हैं और फिर सिखों के प्रमुख ग्रन्थ गुरु ग्रन्थ साहिब का पाठ किया जाता है। यह पाठ 10 दिनों तक लगातार चलता रहता है। फिर जब 10 दिन बाद यह पाठ संपन्न हो जाता है तो उसके बाद कड़हा प्रसाद दिया जाता है। जो लोग शोक में शामिल होते हैं उन सबको कड़हा प्रसाद दिया जाता है। इसके बाद फिर भजन कीर्तन किया जाता और मरने वाले व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए अरदास की जाती है।

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