मनुष्य के मृत्यु के बाद बहुत सारे रीति -रिवाजों के साथ उसकी अंतिम क्रिया संपन्न की जाती है। इन्हीं रीति-रिवाजों को अनुष्ठान के रूप में जाना जाता है। जानते हैं कि मौत हो जाने के बाद अनुष्ठान कैसे होता है?
हिंदू धर्म में अगर किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसके बाद पूरे विधि विधान के साथ मृत शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है। साधु संतों को सनातन धर्म के अनुसार समाधि दी जाती है, वहीं जो सामान्य लोग होते हैं उन्हें जलाया जाता है। साधु संतों को समाधि देने के पीछे एक विशेष कारण है। ऐसा माना जाता है कि संतों का शरीर होता है वो ओरा और ऊर्जा लिए होता है, क्योंकि साधुओं का शरीर ध्यान और साधना में लीन रहता है। उन्हें दफनाने के पीछे यह कारण है कि उनके शरीर की जो शारीरिक ऊर्जा होती है उसे प्राकृतिक रूप से सब जगह विसरित होने दिया जाता है। आम मनुष्य के शरीर का दाह संस्कार इसलिए किया जाता है ताकि जो भी आसक्ति बची हुई हो, वह छूट जाए। इसके अलावा एक वजह यह भी होती है कि दाह संस्कार कर देने से जो रोग या फिर संक्रमण व्यक्ति की शरीर में होता है वो भी नष्ट हो जाता है।
इसके अलावा भी बहुत सारे रीति रिवाज हैं जिन्हें मृत्यु हो जाने के बाद ज़रूर किया जाता है। चलिए फिर जानते हैं कि मौत हो जाने के बाद अनुष्ठान कैसे होता है।
पार्थिव शरीर की परिक्रमा की जाती है-
जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसको दाह संस्कार के लिए श्मशान ले जाने से पहले, उसके परिवार के लोग उसके पार्थिव शरीर की परिक्रमा करते हैं। इसके बाद श्मशान घाट पर दाह संस्कार के समय वो व्यक्ति मृत शरीर की परिक्रमा करता है जिसको संस्कार करना होता। संस्कार करने वाला व्यक्ति एक छेद हुए घड़े में पानी लेकर पार्थिव शरीर की परिक्रमा करता है। इसके बाद घड़े को पीछे गिराकर के फोड़ दिया जाता है। इस क्रिया को इसलिए किया जाता है ताकि व्यक्ति के मोह को भंग किया जा सके। इसके साथ साथ इस क्रिया को इसलिए भी किया जाता है ताकि सारे तत्वों को इसमें शामिल किया जा सके।
मृत शरीर के कान और नाक में तुलसीदल को रखा जाता है-
वैसे तो आपने देखा होगा कि मृत शरीर के नाक और कान को कपास से बंद किया जाता है, मगर कपास की जगह तुलसीदल रखना चाहिए। इससे क्या होता है कि जो तुलसी होती है वो सूक्ष्म कणों को वायु के जरिये को वातावरण में फैलने से रोक देती है। साथ ही जो वातावरण होता है वो भी शुद्ध रहता है।
मृत व्यक्ति के मुख में गंगाजल डाला जाता है-
ये माना जाता है कि व्यक्ति के शरीर से जब प्राण निकलते हैं तो वो मुख से ही बाहर निकलते हैं। इससे वातावरण में उन तरंगो का प्रक्षेपण होता है जो निष्कासन योग्य होती हैं। ऐसे में जब गंगाजल को मुख में डाला जाता है और तुलसी पत्र को रखा जाता है तो मुख से जो वातावरण में प्रक्षेपित दूषित तरंगे होती हैं उनका विघटन हो जाता है। इस क्रिया को करने से वायुमंडल को सदैव स्वच्छ और शुद्ध रखा जा सकता है।
मृत व्यक्ति को नहलाया जाता है और नए वस्त्र पहनाए जाते हैं-
व्यक्ति की मृत्यु हो जाने के बाद पूरे मंत्रोच्चारण के साथ व्यक्ति को नहलाया जाता है। जो नहलाने वाले लोग होते हैं उनके हाथों से संक्रमित सात्विक तरंगों से जब जल दिया जाता है तो मृत शरीर के साथ साथ वातावरण भी शुद्ध हो जाता है। जब शुद्ध वातावरण में मृत शरीर को नहलाया जाता है तो उस देह से रज तम कणों का जो आवरण होता है वो नष्ट हो जाता है। इसके बाद उस देह में जो निष्कासन योग्य सूक्ष्म वायु होती है उसको निकलने में आसानी होती है। नहलाने के बाद मृत शरीर को नए कपड़े पहनाए जाते हैं। इन कपड़ो को धूप दिखाकर तथा गौमूत्र आदि छिड़ककर शुद्ध किया जाता है। इससे क्या होता है कि मृतक के जो कपड़े होते हैं उनके चारों तरफ एक सुरक्षा कवच बनकर तैयार हो जाता है।
दाह संस्कार दिन के समय में ही किया जाना चाहिए-
शास्त्रों के अनुसार जब भी दाह संस्कार किया जाए तो वो दिन के समय में ही किया जाना चाहिए। जो दहन कर्म होता है वो एक तमोगुणी प्रक्रिया होती है। जो रात होती है वो तमोगुण से ही जुड़ी हुई होती है। ऐसे में अगर दहन संस्कार रात में किया जाएगा तो तमोगुणी अनिष्ट शक्तियों की जो मात्रा होगी उसमें वृद्धि हो जाएगी।